शरत की सूक्तियाँ | Sharat Ki Suktiyan

Sharat Ki Suktiyan by रामप्रकाश जैन - Ramprakash Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरत्‌की सूक्तियोँ ६ रारीचीके कष्ट भोगनेकी विडम्बनासे कमो मदखको नहीं पाया जा सक्ता; हौ, पाया जा सक्ता हे तो थोडे-से ठस्भ ओर अहम्मन्यताको । --रोष प्रश्च रारीवी या अभाव इच्छासे आावे या इच्छाके विरुद्ध जाये, उसमें गये करने लायक कुछ नहीं होता । उसके भीतर हे यून्यता, उसके भीतर हे कम ज्ञोरी, उसके भीतर है पाप । --रोप्र प्र आनन्द तो नहीं, बल्कि निरानन्द ही मानो उस (हिन्दू समाज) की इस सभ्यता और भदताका अन्तिम लच्य चन गया हैं । -शेप प्रश्न मनुप्यका डुख ही यदि दुनख पानेका अन्तिम परिणाम हो तो उसका कोद मूल्य नहीं हे । -शेष प्रथ दुखी छोगॉकी कोई अर्हदा जाति नदी हे, र हुःखका भी कोई वेधा हुमा रास्ता नही हे । सा हो तो सभी उसे वचाकर चरु सकते । जे --देना पावना




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