शरत की सूक्तियां | Sharat Ki Suktiya

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Sharat Ki Suktiya by रामप्रकाश जैन - Ramprakash Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शग्तकी লনা & ४ गरीबीक्रे कष्ट सागनेकी विडग्चनाने कभी सह्को नहीं पाया जा सकता, हां, पाया जा सकता ह तो थोडे-से दम्भ और अहम्सन्यताको । “शेप प्रश्न ग़रीबी था माच इच्छसे आवे या इच्छाऊे विरुद्ध आये, उसमे गये करने लायक कुछ नहीं होता । डसके भीतर दे यन्या, उसके भीतर दे कमजोरा, उनके भोतर है पाप | “शेप प्रश्न आनन्द्र तो नही, वल्कि निरानन्द ही सानो उस (हिन्दू समाज) की टस सभ्यता ओर भद्रताका अन्तिम खचय वन राया हे । । +जशैप प्रश्न सनुप्यका दुःख ही यदि छुश्ख पानेका अन्तिस परिणास हो तो उसका कोई मूल्य नही है । >जशैप प्रश्न दुःखी खोगोकी कोड अलूहदा जाति नही है, और दुःखका भी कोई वेधा हुआ रास्ता नहीं है। ऐसा हो तो सभी उसे वचाकर चल सकते । -- देना पावना




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