राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज | Rajasthan Men Hindi Ke Hastlikhit Granthon Ki Khoj

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Rajasthan Men Hindi Ke Hastlikhit Granthon Ki Khoj by छोटेलाल जैन - Chotelal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ पुरुषोत्तमजी मेनारिया के सुपदै कर दिये। मेरी हस्तलिपि बड़ी दुष्पाव्य है रीर मेनारियाजी ने जो विवरण लिये वे भी बड़ी उतावली मे लिये थे अतः प्रेस कापी करने करवाने का श्रम भी मेनारियाजी ने ही उठाया । विषरण लिखने की पद्धति-- प्रस्तुत श्रन्थ में विवरण संग्रह की पद्धति मे छापको कई नवीनताएं प्रतीत होगी रतः उनके सम्बन्ध मे स्पष्टीकरण करदेना ावश्यक है । प्राचीन हृस्तलिखित प्रतयो के अवलोकन एवं सूची बनाने में मेरी अत्यधिक 'भिरचि रही है। मेरे साहित्य साधना के १८ वपे बहुत कुछ इसी काये में बीते हैं । पाश्वात्य एवं भारतीय श्रनेक विद्वानों के सम्पादित पचासों सूचीपत्रो ( जितने भी अधिक सुमे ज्ञात हुए व मिल ख्के ) को देखा एवं ४० इजार के लगभग प्रतियो की सूची तो मैने खयं बनाई है अतः उसके यम्किचित्त्‌ अनुभव के बल पर मुभे प्रचलित पद्धति में इद्ध सुधार करना ब्मावश्यक प्रतीत हुआ । मेरे नम्र मतानुसार विवरण मे श्रपनी ओर से कम से कम लिखकर ग्रन्थकार, ग्रन्थ एवं प्रति के सम्बन्ध में प्राप्त प्रति से ही आवश्यक उद्धरण झधिक रूप में लिया जाना ज्यादा अच्छा है। पाठकों को बतलाने योग्य जो कुछ सममा जाता है बह मन्थकार के शब्दो ही में रखा जाय तो उसकी प्रमाणिकता वहत बद्‌ जायगी । विवरण लिखने वालों की जरासी असावधानी या भूल-घ्रान्ति से प्रवर्त पचासो भन्थ उस मूल के शिकार दहो जाते मैने ख्यं देखा दै क्योकि उसको प्रमाण माने बिना काम चलता नहीं ओर उसके अलुकरण मे जितने भी व्यक्ति लिखेंगे सभी उसी रान्ति को दुदराते जयगे । मौलिक अन्वेषण व जाँ च कर लिखने वाले है कितने १ अतः मैने प्रन्थ के उद्धरण अधिक प्रमाण मे लिये हैँ चर अपनी. मओररसे ङु भी नहीं या कम से कम लिखने की नीति वरती है। भ्रन्थका नाम मरन्धकार उनका जितना भी परिचय न्थ में है, प्रन्थ का रचनाकालः; अ्रन्थ रचने का आधार आदि ज्ञातव्य जिस अन्थ से संक्षेप या विस्तार से जितना मिला विवरण में ले लिया है जिससे प्रत्येक व्यक्ति पर निर्दिष्ट मेरे लिखतसार को स्वयं जांचकर निणेय कर सके । जहाँतक हो सका है म्रन्थ के परयो की संख्या का भी निर्देश कर दिया है । ापनी निधारितनीति को में सवेत्र नदीं बरत सका, इसका कारण है विवरण तैयार करते समय सब प्रतियों का सामने न होना । कई संग्रहालयो के वर्षो पहले एवं उतावल मे नोट्स कर लिये गये थे और विवरण तैयार करते समय प्रतिये सामने न थी । अतः पूर्व कालीन नोट्स का ही उपयोग कर संतोष करना पढ़ा | प्रति के लेखनकाल़ के सम्बन्ध




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