श्री यशोधरा चरित्र [सचित्र] | Shri Yashodhara Charitra [Sachitra]
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रन्थ बनाने का सम्बन्ध ३
ग्रन्थ बनानेका सम्बन्ध
कौंडिन्य गौच रूप प्राकाशमें उद्योत करनेवाले दिवाकर तुल्य
ऐसे वल्लभ नामक महाराजा जिनका द्वितीय नाम कृष्ण महाराज
तिनके भरत नामक मन्त्रीके पुत्र नन्हके मन्दिरमे निवास करते
ग्रभिमान-मेरु पुष्पदन्त कवि एसा विचार करते हृए कि जौ खोटे
मामके प्रकाशक स्त्री रादि कुकथाओ्रो सहित श स्त्रौसे पणेन हो,
किन्तु धर्मवर्धिनी कोई एेसी कथाका भ्रारम्भ करं जिसके द्वारा
श्रोता शौर वक्ता एवं दोनोको शीघ्रतर मोक्ष प्राप्त हो ।
पांच भरत, पांच एेरावत रौर पांच विदेह एवं पंद्रह क्षेत्रों
कीधरा, दयाकी माता भ्रौर कृपाकी सखी है; उनमे ध्म
उत्पन्न होता है तथा उपयु क्त पंचदश क्षेत्रोमे पांच विदेह तो.
स्थिर धर्म हैं भ्र्थात् विदेह क्षेत्रोंमें श्रास्वती धर्म रीति प्रचलित
रहती है, किन्तु पांच भरत श्रौर पांच ऐरावत एवं, दश क्षेत्रों में
-धर्मकी न्युनाधिकता रहती है ब्र्थात् कालचक्रके परिवतेनसे
ध्मैका प्रकाश ओर व्युच्छेद होता रहता हे ।
' इस जस्व्ूद्वीपके भरतक्षेत्रमें प्रथम ही धर्मके प्रकाशक वृषभ
की ध्वजके धारके चार प्रकार देवेंन्द्रोंको हर्षित करनेवाले
श्रीवृषभदेव पुरुदेवस्वामी महाराजाधिराज हुए 1
.' उन्होने. जसा धर्मक स्वरूप प्रतिपादन किया, उसी प्रकार
शेष तेवीस तीर्थकरोने भी किया, उन्हींके कथनानुसार मैं भी
जीवोको हितकारिणी, संसारतरिणी, मिथ्याधमं विनारिनी
. श्रौर सत्यधसं प्रकाशिनी कथाका आरम्भ करूंगा । इस् कारण
उपयु क्त -चतुविशति ती्थ॑करोकी गुणमाला निज हृदयमे धारण `
करता हं जिससे समस्त विष्नोकी शांति भ्रौर मनोभिलवित
कायंकी सिद्धि हो ।
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