एक लड़की एक जाम | Ek Ladki Ek Jaam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ek Ladki Ek Jaam by अम्रता प्रीतम -Amarta pritam

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

Add Infomation AboutAmrita Pritam

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
के भ््ञ था, उनके पीछे पढ़ी तीन सादों के पाए बताते थे कि तन्दूर वाले के बास-चच्चे शरीर श्री रत भी वही रहते थे 1 मुझे लगा, कोई इतना थडा सत्तरा नहीं था। वहाँ पर भ्रौरत की रिहाइश थी, इस्सत की रिहाइश थी 1, किसी प्रोरत में टाद का काँटा मोड़ा 1 वाहर की सर्ककर देखा, ब्रौर फिर वाहर माकर मेरे पारस श्राकर पड़ी हो गई । बीवी, दूने मुके पहचाना नहीं ? ” श्त्ददी तो नरम बह एक सादी-सी जवान भौरत थी । मैं उसके मुंह की श्रीर देतती « रही, पर मुकते कोई भूली-विसरी वात भी याद नहीं ग्राई। तु पहचाने लिया है, बीबी ' पिद्धने साले, संच, उसमे भी पिन सात तू यहाँ पायी थी न *” *गप्ाषी तो थी ।”” “सामने मैदान में एक बरात उतरी थी।” हा, मुझे गहद याद है 1 “वहीँ तूने मु डोली में एक रपया दिया था ।” बात याद भाई । दो रास पहले मैं चण्डीगढ गयी थी । बा पर नया रेडियो स्टेशन सुनना था । सौर पहले दिन के समागम के लिए, मेरे दिस्ली के दफ्तर ने मम यहाँ एक कविता पढ़ने के लिए भेमा था 1 मोहनसिद्ध तथा एक हिन्दी के ववि जासन्थर स्टेशन मी सरफ से श्राये थे । समागम नहदी ही स़त्म हो गया था शरीर इम तीन-चार लेखक गोशन्या सदी देसने के लिए घण्डीगढ़ से दस गोव में भाये थे । नदी वोई सील-इंड्र सील दलान पर थी, भोर वापसी चढ़ाई घड़ते हुए हम सब चाय के एक-एक गरम प्यास को तरस गाए थे । सदमे साफ़ 7 भर सुनो यही सभी थी 1 यहीं से चाय वय एक-एक गरम प्याला पिया था। उस दिन इस दुकान पर पकने हुए सौस झौर रीटियों के मिठाई भी थी। तन्दूर वाला कह रहा था, “घाव दा से मेरी भाजों की डोती गुडरेगो । मेरा! मी तो दुख करना बनवा लत




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now