स्वदेशमीमना में वलिदान | Svadeshabhimana Men Validan
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
111
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ स्वदेशाभिमान्मे विदान
पुकार थी । लोग अपने देशका दुखडा रोने लिये एकत्चित होकर
व्याख्यान दे और सुन रहे थे । व्याख्यानमे बालबृद्ध सभी खप-
स्थित थे । भारतकी जागृत्तिके कारण माताएं मी देशकी पुकार-
पर समामें झाई थीं । किसी की गोदमें बच्चा था तो कोई पने
बड़े बच्चेकी अंगुली पकड़े सभाके चारों '्ोर खड़ी थीं । कोई
पता श्रपने पुत्रे सामने देशरी वतमान दशाका चित्र खींच
रहो था | ऐसे समयमें तड़ तड़ करके गोली पड़ ने लगी ।
गगी तो चलने ही तार्ग', साथ दी जनताने पीछे फिरकर
देखा कि सेशीनगन भी गोरखे और गारे चलाने लगे हैं । बड़ी
विपत्ति श्राई। लोगोंके वास गुम हो गये । पर किया क्या
जाय । कितने दी गिरे, कितने दी मरे, ऊितने दी स्वग सिधारे ।
स्त्री पुरुष बाल-वृद्ध सभी मरे,गिरे और घायल हुए ।
इसी मारामारीमें एक दस वषके सदन मोहन नामी बालकको
गोली लगी । बालकने गोली खाते दही अगे बदकर कहा “एक
गोनी यौर स्वराज स्वराज” । यह कहकर बालक जमीनपर
गिर पड़ा । कंवन 'एक गोलो रौर तथा स्वराज स्वराजः वालो
बात प्रत्येक भारतवासी कानमे गूजती रह् गई ।
में नुकसान सहनेको तेयार ह
9
सन् १७७५ ३० मे अरमरीकन सेनिकनि वोस्टन शहरके चारों
रोर घेरा डाल दिया । घेरा तो डाल दिया पर उसपर गोलाबाज
User Reviews
No Reviews | Add Yours...