स्वदेशमीमना में वलिदान | Svadeshabhimana Men Validan

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Svadeshabhimana Men Validan by हरिदास माणिक - Haridas Manik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ स्वदेशाभिमान्मे विदान पुकार थी । लोग अपने देशका दुखडा रोने लिये एकत्चित होकर व्याख्यान दे और सुन रहे थे । व्याख्यानमे बालबृद्ध सभी खप- स्थित थे । भारतकी जागृत्तिके कारण माताएं मी देशकी पुकार- पर समामें झाई थीं । किसी की गोदमें बच्चा था तो कोई पने बड़े बच्चेकी अंगुली पकड़े सभाके चारों '्ोर खड़ी थीं । कोई पता श्रपने पुत्रे सामने देशरी वतमान दशाका चित्र खींच रहो था | ऐसे समयमें तड़ तड़ करके गोली पड़ ने लगी । गगी तो चलने ही तार्ग', साथ दी जनताने पीछे फिरकर देखा कि सेशीनगन भी गोरखे और गारे चलाने लगे हैं । बड़ी विपत्ति श्राई। लोगोंके वास गुम हो गये । पर किया क्या जाय । कितने दी गिरे, कितने दी मरे, ऊितने दी स्वग सिधारे । स्त्री पुरुष बाल-वृद्ध सभी मरे,गिरे और घायल हुए । इसी मारामारीमें एक दस वषके सदन मोहन नामी बालकको गोली लगी । बालकने गोली खाते दही अगे बदकर कहा “एक गोनी यौर स्वराज स्वराज” । यह कहकर बालक जमीनपर गिर पड़ा । कंवन 'एक गोलो रौर तथा स्वराज स्वराजः वालो बात प्रत्येक भारतवासी कानमे गूजती रह्‌ गई । में नुकसान सहनेको तेयार ह 9 सन्‌ १७७५ ३० मे अरमरीकन सेनिकनि वोस्टन शहरके चारों रोर घेरा डाल दिया । घेरा तो डाल दिया पर उसपर गोलाबाज




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