प्राचीन तिब्बत | Prachin Tibbat

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Prachin Tibbat by रामकृष्ण सिनहा - Ramkrishn Sinaha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के लामा ११ उसे पढ़ाने से अधिक पढ़ने का शौक था। वह हफ्तों स्कूल नहीं जाता था। इतने समय में वह अपनी किताबों में भूला रहता था या और लामाओं के साथ बैठकर धर्म-चचों किया करता था। अपना सब काम उसने अपने सहायक अध्यापक के सौंप खखा था, जिसे उससे कुछ अधिक लड़कों की परवाह न थी। परवाह थी उसे सिफे एक बात की--कि कहीं उसकी नौकरी छूट जाने की नौबत न आ जाय और इस बात का अलबत्ता उसे बराबर ध्यान बना रहता था । इस प्रकार छोड़ दिये गये लड़के अपने अधिकारों का पूरा-पूरा उपयोग करते थे । जो कुछ थोड़ा-बहुत सबक उन्हें याद भी है जाता, उसे खेल-कूद में भूलते उन्हें देर न लगती । फिर एक दिन वह आता जब दावसन्दूप अपने शिष्यों के सामने यमराज की भोति कठोर बनकर आता । सब लड़के एक पंक्ति में उसके सामने आकर खड़े हा जाते । तब सबसे किनारे खड़े हुए लड़के से काई सवाल किया जाता । अगर उसने उसका उत्तर दिया ता दिया नहीं तो उसके पास खड़ा हुआ दूसरा लड़का जवाब देता ! ठीक जवाब देने पर वह अपने बगल के साथी के एक चपत रसीद करता और अपनी जगह पर उसे करके स्वयं उसकी जगह पर खड़ा हवा जाता । पिटनेवाले बेचारे लड़के के इतने से ही छुट्टी न का सा जाता! उसका भी जवाब टेक खड़ा हुझा यानी क्रतार कां कट तरह थप्पड़ मारकर उससे न को बदली कर लेता कभी-कभी ता आफत का सारा काई बेचारा इसी तरह चपत पर चपत खाता हुआ हृतबुद्धि कर पंक्ति के एक सिरे से बिल्कुल दूसरे किनारे तक पहुँच जाता । कर




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