भारतीय राज्य शासन | Bharatiy Rajy Shasan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर्पनी का शासन ७ दुरुपयोग करते श्रोर उनसे ध्रनुचित लाभ उठाते थे । नवाब ने इये रोकना चाहा, पर बह सफल नष्टं हृश्या । इस पर उसने सब ब्रायात-निर्यात कर उठाकर, सब व्यापारियों का समान रूप से निष्शुब्क माल लाने ले जाने को इजाजत दे दी । इससे कम्पनी का प्-प्राप्त व्यापारिक विशेषाधिकारों से कोई लाभ न रहा; श्रोर उसके कर्मचारियों का भी अनुचित लाभ उठाना बन्द हा गया । उन्हें यह बहुत ध्खरा । कुछ श्मन्य बातों से भी नघा श्रौर कम्पनी का संघष बढ़ता रहा । श्न्ततः विवश दाकर नवाब को युद्ध डना पड़ा । उसने बादशाह शाषश्यालम द्वितीय, श्रौर श्रषध के नघाब वजीर श॒जाउदौला की सष्टायता ली । सन्‌ १७६४ ३० मे, बक्सर का युद्ध हृश्मा। उसमे झ्ंगरेजों ( कम्पनी ) की घिजय रही । सन्‌ १७६५ ई० में, इलाहाबाद में सन्धि हुई । बादशाह ने कम्पनी के बंगाल, बिहार श्रोर उड़ीसा की दीवानी श्र्थात्‌ मालगुजारी प्राप्त करने का श्रधिकार दिया, तथा कम्पनी की ध्धिकृत “ उत्तरी सरकार › नामक भूमि पर उसका धिकार स्वीकार किया । इस प्रकार कम्पनी को श्रव बंगाल शमादि में कानूनी स्वत्व प्राप्त होगया । कम्पनी ने बादशाह का २६ लाख रुपये सालना देना मंजूर किया । ध्चघ के नघाब घज्ञजीर शुजाउद्दोला से रुपया लेकर उसका राज्य उसे लोटा दिया गया । रव वह झंगरेज्ञों का सद्दायक हो गया, शोर उसे इलाहाबाद शोर कड़ा जिले बादशाह को देने पड़े । बंगाल का नघाब पुनः मीरज्ञाफर बना दिया गया था । रव उसके मर जाने पर सन्‌ १७६५ १० मे उसका पुन्न नवाब मान




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