आर्थिक भूगोल की सैध्दान्तिकरूपरेखा | Aarthik Bhoogol Ki Saiddhantik Rupreka

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Aarthik Bhoogol Ki Saiddhantik Rupreka by नन्दावल्लम जोशी - Nandavallam Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय -घ्रवेश ` ` सम्मिलित हो जाता है। मानवीय क्रियाकलापों में सभ्यता के विकास के समिय जो जटिलता बढ़ी उसके परिणामस्वरूपं सूंगोल में प्राकृतिक एवं ,मानदीय, पहुचुओं का श्रलग.प्रलग प्ष्ययन किया जनि लगा श्रौर उसको दो शाखाए' प्रस्फुटित हुई-- प्रतिक सूगोल एवं मानव मुगोल । ॥ श्रा सूगोल मानव भूगोल की ही एक महत्त्वपुण शाखा है जिसमें भी मानवीय क्रियाकलापों का श्रध्ययन किया जाता है। यह पहले ही बताया जा चुका है कि मनुष्य जी भी कार्य करता है, वह कुछ प्राप्ति के लिये ही करता है । चाहे षह दैनिक भ्रावर्यकंता पूर्ति'के तिये फिया जाए, चाहे श्रनावश्यक संग्रह के लिए । श्रतः मानव के इन क्रियाकलाप को भ्राथिक क्रियाकलापोकीसंज्ञादेदी जातौहै) इन्हीं कार्यों को प्रभाव पृथ्वीतल पर पड़ता है श्रौर वे भूगोल का विषय बन जाते हैं । मानवीय सभ्यता के विकास के समान ही भूगोल विपय का भी विकास हमरा । प्रारम्भ मे भूगोलं वेत्तामोने ससार का चित्रण वैषा दी किया जेसा उन्होंने उसे देखा चूंकि उस समय यह घारणा थी कि मानव के प्रत्येक काम के पीछे किसी दंविक शक्ति का हाथ है। इसलिए प्राकृतिक घटनामों श्ौर वश्तुमों का झाध्याहि्मिक विवरण भी प्रस्तुत किया जाता था । इस विचारधारा को मानने वाले लोग दववादी (गर०् 815) कहे जाते है 1 धीरे-धीरे देविक शक्ति के स्थान पर मानवीय क्रियाकलापोंको प्रभावित भरने वाली शक्ति के रूप में प्राकृतिक वातावरण के तत्त्दों को धिक महत्त्व दिया जाने लगा। इस प्रकार की विचारधारा को मानने वाले लोगों को भू-सत्तावादी (७००००७) कहते है। कुछ लोग उन्हे निश्वयवादी (0८/लण्म॑पो$६ 8) भी कहते है । 19वीं शताब्दी के भ्रस्तिम वर्षों में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के श्रन्वेपणों एवं तकनीकी ज्ञान के विकास के फलस्वरूप जो प्रगति हई उसने चिन्तको एवं विचारकों के सोचने के ढंग पर प्रभाव डाला । इसमें जो परिवतंन हुमा, उसके कारण वातावरण में विद्यमान विभिन्न प्रकार के अवसरों के प्रति सम्भावना खोजी जाने लगी। इस विचारधारा को भानते बालों को मानवसत्ताबादी (फ/८०८१४६४) कहते है । दूसरे शब्दों में इन्हें सम्भववादी (?0551010515) भी कहा जाता है 1 तकनीकी ज्ञान में भ्राश्चर्यजनक विकास हो जाने से श्रसम्मव लगने वाले बड़े-बड़े कायं भी भूतन यर मनुष्य द्वारा सम्पंघ्न किये जा रहे है । मनुष्य की इस भ्रदूभुत क्षमता पर विश्वास करने वालो को टेक्नोक्रट्स (1०9००९7९) क्ते है । इस मकार प्राकृतिक दभाभरोके पर्परिद्य में मानवीय क्रिया-झलापों को भौगोलिक 'भध्ययनों में भलग-प्रलग कालो में झलग-भलग रूप मिलता रहा है । भूगोल की भ्रध्ययन पद्धति के क्षेत्र मे भी इसी प्रकार का परिवर्तन होता रहा है । 1950 के मध्य तक सावधानीपुर्वक किए गए मापों के स्पान पर कारशिक




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