भारत का आर्थिक भूगोल | Bharat Ka Aarthik Bhoogol

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Bharat Ka Aarthik Bhoogol by पं दयाशंकर दुबे - Pt. Dyashankar Dubeशंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पं दयाशंकर दुबे - Pt. Dyashankar Dube

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शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४ ) किसी से लड जावेगा दौर उत्तका जीवन अथवा अपना जोवस नष्ट कर देगा । यदी कारण है कि शिकारियों में शक्तिबान व्यक्ति ्ादर की दृष्टि से देखा जाता है । गड़रिये का स्वभाव शिकारी से भिन्न ोता है क्योंकि उसके लिए जीवन मूल्यवान होता है वह अपने पशुश्नों के जंगत्नी फशुप्ों से बचाने का प्रयल करता है । उसके जीवन का ध्येय अपनी पशु सम्पत्ति की रक्षा करना डोवा है। भला बह शिकारियों को भाँति कलइप्रिय क्योंकर दोगा | यददी कारण है कि गड़रियों में आायु और अनुभव के श्रद्धा की चृष्टि से देखा जाता है न कि शारीरिक शक्ति के । किसान का काम खेती बारी करना श्र फसल की रक्षा करना है । उचके जीवन का उद्देश्य विनाशकारी से होकर शपनी खेती की उन्नति करना होता है । क्रिसान का जीवन अझपनी भूमि से इतना अधिक सम्बन्धित होता है कि बह किसी भी परिवतेत के। जल्दी स्त्ीकार सहीं करता । किसान शपने गाँव अथवा देश की छोड़ कर बादर जाना पसंद नहीं करता शरीर न वह किसी न बात के शीघ्र हो अपनाता है। फिसान का स्वभाव शांत होता है । कलह उसके सभाव के विरुद्ध है। गाँधों की कुछ जातियों में प्राचीन रोधियां के श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है और उन्हें अपने च रापरम्परागत झमुमव पर अधिक विश्वास होता है । ाजकत बड़े बड़े व्यापारिक तथा औद्योगिक नमरों में रहेसे वाले मजदूरों का एक नया वर्ग उत्पन्न हो गया है जो कि कारखानों में काम करते हैं । इन औद्योगिक भगरों में रदषने बाकि सजदूरों का स्त्रभाव सबंधा भिन्न द्ोता है । नगरों में रहने बाले मजदूरों का जीवन एकसा नहीं रहता । बह बदलता रहता है। आज मजदूर एक तरह की मशीन परे काम काता है तो थोड़े दिनों के पपरास्त एक दूखरी तरह की मशीन को शधिष्कार हो जाता है और मजदूर के इत्र पर काम करसा पढ़ेतां




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