मुक्तधारा | Muktdhara

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Muktdhara by धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री - Dharmandranath Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द भूमिका | ( आलोचनात्मक । ) > सामान्य विवेचन । बीसवीं सदीके साथ साथ मनुष्यजातिके इतिहासमे एक नये युगका प्रारम्भं होता दै। युरोपका विश्व-व्यापी महायुद्ध इस नये युगकी बीसवीं सदीकी भूमिका थी । रक्तपातसे उत्पन्न इई लालिमा इस नई उषा- नई पुकार। की अरुणिमा थी । तोर्पोकी गढगड़ाहट ओर रोहेकी क्षङ्कार इस नये युगका विजयनाद था । युद्धके समाप्त होते ही फ्रान्सके दाशेनिक ठेखक रोमेन रोरेण्ड ( 1२007 २0112. ) ने “ आत्माके स्वातन्न्यकी घोषणा › ( 126] श20ा1 ग 006 [त606066घ्८6 भ ६16 ७६ ) करते हुए बतलाया था कि मनुष्यकी आत्माने अबतक अनेक दासताओंसे स्वतन्त्रता पाईं दै; परन्तु अब उसै ° राष्रीयता ' की दाखतासे मुक्ति पानी है । यह असम्भव है कि“ एक जाति ` ओर * एक राष्ट्र ' के नाम पर मचुष्यकी आत्मा राष्रकी सारी बुरी भटी आज्ञाओंके सामने, विवेकुन्य होकर गुलाम बनी रहे । मनुष्यकी इस दासताका परिणाम ही युरोपका महायुद्ध था + ‹ अआत्माकी स्वाधीनता ` के इन अर्थोको १९ वीं सदीने कभी न समक्षा था । मेजिनी ( 22201 ) के लेखोंमें उनकी केवल गन्ध पाई जाती दै । नये युगकी उषा फूटने पर भी पुरानी रातका--१९ वीं सदीका-अन्धकार अभी रोष है; पर संसारका घटनाचक्र बतला रहा है कि इस ‹ नये युग की पुराने पर विजय होगी और नया प्रकाश्च पुराने अन्धकारको मिटा देगा । रोलैण्डने अपनी घोषणाके समर्थनके लिए संसारकी श्रेष्ठ आत्माओंको निम- न्त्रित किया ओर भारतके ^ कवीन्द्र ' की ओर अपनी अभिराषापूणे दृष्टि दोदर ॥ इधर कवीन्द्रके ङेखोर्मे उस सन्देश्चका बीज पहलेसे ही विद्यमान था। जो राग यूरोपीय दाशनिकोंको युरोपीय महायुद्धके कुत्सित कोलाहलके बीच सुनाई दिया है उसे 'रवीन्द” अपने निर्जन निकुमें बैठे हुए पदलेद्दीसे अछाप रहे थे । मद्दा- + यह आवइयक है कि यह भूमिका नाटक पढ़नेके पश्चात्‌ पढ़ी जावे । यह्‌ लेखककी स्वतन्त्रू समालोचना है जिसका उत्तरदायित्व सवेथा उसीपर है ।




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