दुर्गेशनन्दिनी भाग - 2 | Durgeshanandani Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
93
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बाबू बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय - Babu Bankimachandra Chattopadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्रिवीय खण्ड ! ` १३
हम तुभ को बंध संमि में के चलें
उसमान के पीछे २ स्त्री द्ध अपि अ जाक्षर उपचय
खड़ी हुई 1 बीरेन्ट्रासिंह एक मिखारी ज्राह्मण से वात कर रहे
थे इससे इसको नहीं देखा । शूघटवाली ने घूघर दस कर
देखा तो वह बाइझाण जमिराम स्वामी था |
बीरेस्ट्रसिंद न अमिराम स्वामी से कहा ' गुसदेव अब मैं
बिदा होता हूँ। और में आप से कया कहूँ इस लोक में अब
नसुझको आर कुछ न चाहिये 1 *
आभराभ स्वामी ने उसली से पीछे खड़ी छेघटवाली सी
को दिखाया ! बीरेन्दर्सिंद ने मुह फेर कर देखा आर सूघट-
चाली झपट छंघर इटा बेड़ी बद्ध बीरेन्टॉ्सिदट के चरण पर
मिश्पडा।
चीरन्द्रसि्ट ने गदगद स्वर से एकारः परिमा !
शन्तु बिमला रोने छमी ।
+ हे प्राणनाथ ! हे स्वामी ! हे राजन् ! अच में कददों जाऊं!
स्वामी मुझको छोड़कर तुम कहां चले ? सुझको किसको
सपे जत दुः 1 श्रम्; `
वीरेन्द्रसह की रलौ से सी आंसू गिरने उगे 1 हाथ
पकड़ कर ।चिमला को उठा (लेया आर कोठे ` प्यारी ? प्राणे
श्वरी ! क्यों तू मुझको रोरुती है ! शश्च उख कर अरो
कायर समझेगे 1
विमला उप रदी । बीरेस्ट्रासिड ने फिर कहा ' विभला !
में तो मव जाता हूं ठुम लोग मरे पके जना!”
विमला ने कहा * आाऊँगी सो
(गौर धीरे से जिसमें और लोग न सुनें ) भाऊँंगी तो
परत इस दुख का प्रतिदोघ करके बाऊँंगी 1
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