दुर्गेशनन्दिनी भाग 1 | Durgedhnandani Bhag 1

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Durgedhnandani Bhag 1  by बाबू बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय - Babu Bankimachandra Chattopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ হই] হাজলালা तण्डा লা म अपना सुख्य হাল কতা समर में जाकर मानासह ने इस अपने भ्तिनिधि को বুজলাম आर {ख छ मजा क समां छूकर बद्धमान स हमकःे आकर मिलो राजा बर्द्धमान में पहुँच गए और सेयदसखां ने लिख भेजा कि हमारी सेना एकतृत करने मे बिहूब होगा तबतक वर्षा कार आ ज्ञायगा यादि आप वहीं पर ठहरे रद्दे तो में शरद्‌ ऋतु के आरम्म में आपसे आकर मिल्गा | राजा ने दारुकेश्धर के तौर पर जद्यानाबाद नाम झाम में अपना डेरा डाछ दिया और सैयदखां की राह देखने लगे। वहां के रहने वालों से सालूम डुआ कि उनकी यह दशा देख कतलूखां का खाहस और भी बढ़ गया और वह जहामाबाद के समीप लूट कर रहा है| राजा ने घर्बराकर उसके बङ भोर अभिप्राथ आदि का पता लगाडे के लिये अपने एक प्रधान सेनाध्यक्ष को भजना उचित समझा । राजा के साथ उनका श्रिय पुत्र ज़गतर्सिह भी युद्ध में आया था इस दुःसाध्य कार्य के भार छेने का उसकी इच्छा देख राजा ने एक सत सवार साथ करके उसको इसका पता छगाने के निमभित्त भेजा राजकुमार बहुत शीघ्र काम करके ভীহ आये थे उसी समय मन्द्रि में पाठक लोगों से उनसे भेट हुई ও “ (न अीडिदतित-




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