दुर्गेशनन्दिनी भाग - 2 | Durgeshanandani Bhag - 2

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Durgeshanandani Bhag - 2 by बाबू बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय - Babu Bankimachandra Chattopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्रिवीय खण्ड ! ` १३ हम तुभ को बंध संमि में के चलें उसमान के पीछे २ स्त्री द्ध अपि अ जाक्षर उपचय खड़ी हुई 1 बीरेन्ट्रासिंह एक मिखारी ज्राह्मण से वात कर रहे थे इससे इसको नहीं देखा । शूघटवाली ने घूघर दस कर देखा तो वह बाइझाण जमिराम स्वामी था | बीरेस्ट्रसिंद न अमिराम स्वामी से कहा ' गुसदेव अब मैं बिदा होता हूँ। और में आप से कया कहूँ इस लोक में अब नसुझको आर कुछ न चाहिये 1 * आभराभ स्वामी ने उसली से पीछे खड़ी छेघटवाली सी को दिखाया ! बीरेन्दर्सिंद ने मुह फेर कर देखा आर सूघट- चाली झपट छंघर इटा बेड़ी बद्ध बीरेन्टॉ्सिदट के चरण पर मिश्पडा। चीरन्द्रसि्ट ने गदगद स्वर से एकारः परिमा ! शन्तु बिमला रोने छमी । + हे प्राणनाथ ! हे स्वामी ! हे राजन्‌ ! अच में कददों जाऊं! स्वामी मुझको छोड़कर तुम कहां चले ? सुझको किसको सपे जत दुः 1 श्रम्‌; ` वीरेन्द्रसह की रलौ से सी आंसू गिरने उगे 1 हाथ पकड़ कर ।चिमला को उठा (लेया आर कोठे ` प्यारी ? प्राणे श्वरी ! क्यों तू मुझको रोरुती है ! शश्च उख कर अरो कायर समझेगे 1 विमला उप रदी । बीरेस्ट्रासिड ने फिर कहा ' विभला ! में तो मव जाता हूं ठुम लोग मरे पके जना!” विमला ने कहा * आाऊँगी सो (गौर धीरे से जिसमें और लोग न सुनें ) भाऊँंगी तो परत इस दुख का प्रतिदोघ करके बाऊँंगी 1




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