रसीदी टिकट | Rasidi Tikat

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Rasidi Tikat by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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केवरतन भी अलग रख दिए जाते ये। होनी का मुह अभी देखा नहीं था पर सोचती हू उस पल कौन जाने उसवी ही परछाइ थी जो बचपन मे देखी थी परछाइया बहुत बडी हवीकत होती हैं । चंहर भी हकीकत होते हैं। पर कितनी देर ? जितनी देर तक आप चाहें चाहें तो सारी उम्र । वरस आते हैं गुजर जाते हैं. सकते नहीं पर कई परछाइया जहा कभी रुव ती हैं वही रकी रहती हैं यू तो हर परछाइ किसी वाया वी परछाइ होती है काया की मोहताज । पर पद परछाइ ऐसी भी होती हैं जो इस मियम के वाहर होती हैं काया से भी स्वतत्र । नौर यू भी होता है कि हर परछाईन जाने कहा से और किस काया से टूटकर तुम्हार पास आ जाती है और तुम उस परछाइ का लेवर दुनिया में भअूमते रहते हो और योजते रहते हो वि यह जिस वाया से टूटो है वह कौन-सी है . गलतफ्हमिया का क्या है ? हो जाती हैं तुम यह परछाईं गरो के गले से त्तताबर भी देखते हो न जाने उसी के माप की हो नहीं होती न सही सुम फिर उसे--अधरे से को--पवडकर बहा से चल देते हो मेरे पास भी एक परछाइ थी । नाम से क्या होता है उसका एक नाम भी रख लिया था--राजन घर मं एक नियम था कि सोने से पहले कीतन सोहिले का पाठ बरना होता था इसके सबंध म पित्ताजी का विश्वास था कि जसे जसे इसे पढ़ते जाते हो तुम्हारे गिद एक किला बनता जाता है और पाठ के समाप्त होते हो तुम सारी रात एक किले बी सुरक्षा मे रहते हो और फिर सारी रात बाहर से किसी की मजाल नहीं होती कि वहूं उस क्लि म प्रवेश कर सके । तुम हर प्रकार की चिन्ता से मुक्त होकर सारी रात सो सकते हो । यह पाठ सोते समय करना होता था । आाखें नौद से भरी होती थी इतनी कि मीद वे गलवे मयहू अधूरा भी रह सकता था। सो इस सबंध मे उनका कहना था कि अतिम पव्ति तक इसे पूरा करना ही है। अगर अततिम पकितयां छूट जाएं तो क्लिवदी मे कोई कोर-वसर रह जाती है इसलिए बह पुरी रक्षा नही कर सकता । सो अतिम पक्ति तक यह पाठ करना होता था। बहुत बच्ची थी । चिन्ता हुई कि इस पाठ के बाद मेरे गिद किला बन जाएगा. तो फिर राजन मेरे सपने में किस तरह आएगा ? मैं किले के अदर हीऊगी वहू किले के वाहर रह जाएगा सो सोचा कि पाठ वठस्थ है अपनी ३ गुरुग्रथ एक लश विशेष । रसीदी टिकट




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