सागर लहरें और मनुष्य | Sagar Laharen Aur Manushya

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Sagar Laharen Aur Manushya by उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सागर, लहरें बौर मनुष्य क लगाकर बंगी को सौप दिया श्रौर वहीं एक कोने में खड़ा यौड़ी पीने लगा} वतौ बरामदे में श्राकर मछली वालो से बातें करने लगी । उसके ऊचे श्नौर मरदानें स्वर से वातावरण ठकं गमा ) एकाध कार उसने वातों- वातौ विद्रे को ठंडाभौ 1 रघा ङरकर मां की सहायता करने तमी! वी ऊने स्वरमे कट्‌ रटी यी-- “वरसोवा शनै मू काय लाम ? जास्ती मच्छी नई मिलताय । ईससे तो खार, माहोम, वर्ली का कोली लोक मजा करताय । बडान्वड़ा मच्छी हो मिसताय !. ए छोटी-छोटी मच्छी 1” बच्ची टॉकरियों से एफ मुट्ठी मच्छी उठाती घर लापरवाही से विसेर देती । ऊंचे स्वर में बोलने के कारण ध्रासपास के एक-दो मच्छीमार श्रौर श्रा गए । सबने बदी की चाहत का समर्थन किया । “वरसोवा का घन्धा स्नान हो गया । दर रोज मील का चवकर सार- साय तब किदर जाकर दो पाटी साल भिलताव । श्रदया कड्या हेग 4५ एक बुद्ध बील उठाना “हमारा जमाना में होडी (नाव) पर जाकर डोज (जाल) डाला नई के ढैर-का-देर मच्छी भाया ईमान नई होपेंगा तो कइसा होयेंगा । कइसा चलेगा 1 बिट्ुन बीच ही में बोल उठा, “दर रात मारेंगा तो. कइसा मच्छी झापेंगा । पहने थोडा खरच था थोडा मच्ी मार, जागता 2“ “चल जाने दे, दे वी श्रबी जो कुच सिलताय झ्रपन कु गुजारा तो झ्लोई करने कायन तद्धी वीतो मागा दे,“ तीसरे ने कहा) ररे सभी कुच मागा है । चावल, शाक, चिउडा । कपड़ा के तो झगार लग सयाय । गरीब मानस कइसा पहनें । ' बशमदे में रखी टोशरियों को लक्ष्य करके लोगों नें जीवन की ब्यास्या कर डाली; राजनोति, सरकार के ऊपर धपने-झपने ज्ञान के पैमाने से चर्चा की; समाज के ऊपर व्यग-वाण कसे । वंधी ने टोकरियाँ उठाकर भीतर के झाँगत में रसत्रा ली । विट्रल वशी की नजर बचाकर बाहर निकल गया 1 4 र ध




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