आम्र पाली | Aamrapali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
271
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२८ आम्रपाली
अकाली +
नरक मिले उसे भी भोगनेके लिए तंर होना पड़-पर उसे यह् क्रोध दवाना
पड़ा क्योकि इसके सिवा दूनरा मागं ही न था, वोला--
'चिरंजीव, तू पत्थर भी नही, मिट्टी का ,ढेला है ढेला, समभा । तुभपर
ज़रा भी विश्वास नहीं किया जा सकता । तू मेरा मित्र नहीं, तु मे,...'
'सुधीर ! ,...' चिरंजीव सिर उठाकर बीच में ही बोल उठा-'तू कहे उसे
में मारने को प्रस्तुत हूँ, में स्वयं मरने को तैयार हूँ, पर तू एक लड़की को
देखने.के लिए परगाँत्र में एक पराये घर में घुस जाय और में तेरी प्रतीक्षा में
बाहर चक्कर काट; यह मुझसे नहीं होता....हो ही नहीं सकता 1
तू 'च्रंजीव ! ' अचानक सुधीर, चिरंजीवके पास भपट आया ओौर विरोध
गैदखाकर बोला--'उसे लड़की मत कह, आम्रपाली लड़की नहीं युवती है,
युवती; समझा ?' | 8
हाँ, हाँ, भाई युवती है, सुन्दर युवती है, अद्भुत है, अप्सरा है,
किन्नरी है बम ¦ गाँव से निकलकर यहाँ बैदशाली नगर आने में. दोपहर तक
उसके न्रिए जो भी तू बड़बड़ाया वह सब कुछ यह युवती ही है, पर इसके
लिए संधागार मे जाना छोडकर तुके पहरा देने के लिए खड़ा रहें ? में इतना
अधम नहीं हूं ! यदि आश्रपाली से तुझे प्रेम ही करना हो तो कर, उसके घर में
ही आत्महत्या करनी हो तो वह भी कर, मुझे कोई एतराज नहीं; पर में
सिच्छती हूं, क्षत्रिय हूँ ! आ्रपाली के लिए तेरी प्रेंम-तपस्या में, में कदापि नहीं
कई सकता । मुः सथागार मं उपस्थित होना ही चाहिए । कठिनाई से तीन
खटीनेःमे एक दो वार सम्मिलित होनेवाले लिच्छवी राजाओं की शोर्य-प्रेरक सभा
छोड़कर यहाँ तेरा झरपाल् बचू” ? कभी नहीं ।
कर्मी मनुष्य जितना विनित्र है, स्वयं प्रेम उतना विचित्र नहीं होताः
किड़ा हुआ सुधीर सहसा द्रवित होकर उसे समझाने लगा--'चिरंजीव, प्रिय
मित्र ! ऐसा न कह; मुझे. ुधघिक समय न लगेगा ! तू भगवान बुद्ध का सौ
इर काम लेगा इतने में तो में भा ही पहुँचता हूं । `
भन अभीः 'शावयपुच त्तम कभ घम स्वीकृत नहीं किया है! मंभीर
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