स्वर्गीय हेमचन्द्रजी | Swargiy Hemachandraji
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
191
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
९ मैने बहुत जल्दी देख लिया कि यद अबोध देम गराईके छाय सुबोध
है और सरलता उसके दिये इस कारण सदज है कि व्यय चातुर््बके लिये
उसके पार खाली जगदद नहीं है । छोटी-ओछी बातोर्मे उसका मन न या
सर चतुरोंके बीचर्म अचतुर बननेमें उसे तनिकू असुविधा न होती थी । ”
श्ीयुत कृष्णलाख्जी वर्मानि करई निजी प्रसंगॉपर प्रकाश डाला दै और
शीयुत कृष्णानन्दजी गुप्तकी पैनी दृष्टिकी तराजूपर देमकी अध्ययनशीखता
ठोस ही उतरी है । अन्य सस्मरण भी यथास्थान अपना महत्त्व रखते हैं ।
डुम्खोंकी गंगा
पर प्रेमीजीकि संस्मरण तो मानों दुम्खोंकी गंगा हैं । साहित्यमें कौन चीज़
स्थायी रदेगी, कौन अस्थायी, इसका अनुमान करना अत्यन्त कठिन है, पर
इतना तो कहा जा सकता दै कि ज्यों ज्यों समय बीतता जायगा, बुद्धि-प्रघान
प्ीज़ोंकी अपेक्षा इदय-प्रधान रचनाएँ अधिकाधिक लोकप्रिय होती जायेगी ।
आजके मददायुद्धके बाद भी, जिसमें लाखों पुरुष मारे गये हैं, जिसमें करोड़ों
अनाथ तथा विधवाओंको विलाप कराया दै, यदि मानव समाजका कठोर
छृदय न पिघला तो यदद अत्यन्त आश्चर्य्यकी वात होगी । दमारा टद् विश्वास
कि करण रस अपनी खोई हुई सर्वोच्च पोज़ीशन फिर प्राप्त करेगा। इस
इृष्टसि अपने एकमात्र पुत्रके अनन्त वियोगर्म लिखे गये प्रेमीजीके ये संस्मरण
अपने असाधारण सेयमके कारण युग-युगान्तर तक सदय साहित्यिकोंको
आर आठ ओँ. साति रहैगे ।
दुम्खोंकी गंगाके ये पवित्र दीन दमारे साहित्यिक पा्पोंको धो डाले और
भविष्यके प्रतिभाशाली स्वतंत्र विचार-प्रिय नवयुवकोंको अपने विकासकें छिये
भरपूर अवसर मिें, यही हमारी प्रार्थना दे ।
कुण्डेदवर
टीकमगढ़ चनारसीदास चतुर्वेदी
शरद
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