भागवती कथा | Bhagwati Katha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ ११ )
1. हमारा कदना है, जिस विज्ञानने अरणुगम जैसी यस्तु का
आविष्कार कर लिया; क्या वह देषो को व्मीपधि च््ाविष्कार
सीं कर सकता जिससे मूनक चम कोमल दो जाय, मैंने ख है
मनी ऐसे चमको सुलायम बनाने लिये कार्यालय है । हम
कृहते हैं न हो कोमल चर्म, कठिनता से ही काम चलाया जाय या
प्रद् गत्ता श्रयवा प्लाप्टिक की वस्तुओं से काम चले, किन्तु
वमे कोमल हो उमलिये गौ माताके गले पर छुरी चले यह
रचित नही}
3 इ लोग कहते है ओ गीयें इधर उबर फिरती ग्टती टै, चरन्न
दौर बाजारके सामानकों बिगाइती हैं. जहाँ जाती हैं वहाँ मार
एंखाती है, भूखो मर जाती हैं, इससे श्न्छा यही है, ण्फ ५
चन्दे बाद कर उनका भी दुःख दूर सर दिया जाय श्यौर उनके
कोमल च्म, माम, इड़ी, नस, शांत, सींग यादि से श्राव
1 वदायी जाय ।
यदि मोचय पर प्रतिथन्ध लग जाय श्रोर स्थान स्थान पर
! गोसदन खुल जायें तो ऐसी गोये कहाँ मिलेगों हो नहीं । मान लो
ऐसी गौयें भी हो झोर वे भूग्यी सरती भी हों, तो मैं यह अच्छा
समझूंगा कि वे भूं श्रपनी मोतसे तो भले ही मरे किन्तु वे
कसाई की छुरी से न करें इसका कारण यह है कमाई को ऐसी
सी चोरी से या सी बिनामून्य मिल जाती है या अत्यन्त ही अल्प
मूल्य पर । गौवधे के वायसे माम, हष, चर्म, रनः 'मादि के
स्यवसायसे लगभग णक करोड अमी पलते टे उनमें रधिकाश
मोमासभद्तर पिधमीं क्साई ही होते हैं तो हम 'पनी ही गौश्रोमे
इतने गो दृत्यागेंका पालन करके अपने दी पैरो छुल्दाडी क्यों
मारे ! हमे तो चाहें जैसे भी हो उसे अपनी ही सौत से मरने देना
~ 'बाहिये । गीका एक बिन्दु रक्त भी इस मारवभूमि पर न गिरे।
१० कदं लोग कवे दै-केवल गोवघ न करमेका नियम चनाने
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