कंब रामायण भाग १ | Kamb Ramayan Bhag 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
143 MB
कुल पष्ठ :
556
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के ४ +; के. कब रामायण
( मेरी इस भूखंता पर ) संसार मेरा उपहास करेगा ओर इससे मेरा अपयश
होगा; फिर भी मै रामचरित का गान करने लगा हूँ ; इसका प्रयोजन यही है कि सत्यज्ञान
तथा अलौकिक प्रतिभा से संपन्न ( वाल्मीकि महर्षि ) के दिव्य काव्य का महत्त्व और मी
अधिक प्रकट हो |
जिन ( सदृहृदय व्यक्तियों ) के कान विविध प्रकार की रसमय कविता सुनने
के आदी हो चुके हैं; उन्हें मेरी कविता उसी प्रकार ( ककश ) लगेगी; जिस प्रकार “याल
(बीणा) के मधुर स्वर कौ सुनते हए सुग हो खड़े रहनेवाले अशुण* के कानों में 'पटह'
( चमड़े के ढोल ) की ध्वनि लगे |
८ काव्य, नाटक ओर संगीत-रूपी) त्रिविघ तमिल-बाझमय का जिन्होंने
मली भाँति अध्ययन किया है; उन उत्तम विद्वानों और कबियों से में निवेदन करना चाहता हूँ
“क्या उन्मत्तौ के वचनः मंद बुद्धिवालौं के वदन तथा भक्तजनों के वचनः इनकी परीक्षा
करना उचित हौ सकता दै
बालक ८ खेलते समय ) धरती प्र घरोंदे बनाते हैं, जिन में कोठ रियाँ; आँगन;
........... नृत्यशाला आदि स्थानों को कुछ टेढ़ी-मेद्री रेखाओं से दिखाने की चेश करते हैं ( उन्हें
„+ देखकर ) क्या कुशल कारीगर ( उन घरोंदों के शिल्प-शास्त्र के अनुकूल न होने से ) छ्लुब्ध
.. होंगे १. किंचित् भी काव्य-ज्ञान से रहित मैं; जो यह छुद् काव्य रचने लगा हूँ, इस पर...
क्या मर्मज्ञ विदान् कध होगे ए
पर देववाणी ( संस्कृत ) में जिन तीन महापुरुषों * ले रामायण की रचना की है, |
उनमें प्रथम कवि वाग्मी ( वाल्मीकि) महिं की रचना के अनुसार ही मैंने तमिल-पद्यों में
॑ | 4 प ६: यह रामायण रची है
धर्म-रक्ला के लिए, परम पुरुष ने जो अवतार लिये थे, उनमें से रामावतार का
वर्णन करनेवाला यह प्रसिद्ध काव्य 'शडेयप्प वल्लर'* के ग्राम “^तिस्वेण्णेय नल्लूर
ननित दा. (९)
1 ४ पर १, याल्ः एक प्रकारे की वीणा । प्राचीन तमिल-साहित्य मं याल् का पराय उल्लेख हुआ है| यह माना
_...... जाता था कि यालू का स्वर ठुनकर हिरन मंत्रमुग्बसा हो जाता था. और उसके बाद परह की ककश
धनिका वह सहन नहीं कर सकता था भौर कमी-कमौ वेसी ध्वनि सुनने पर अपने आाण भी छोड़.
देता या 4
के आरंम में कई स्थानों में किया है
स उन्होने महाकनि कंवर को आश्रय दिवाथा।
में भी रहे पे, तथापि अपने प्रथम साश्रयदाता .
User Reviews
No Reviews | Add Yours...