कंब रामायण भाग १ | Kamb Ramayan Bhag 1

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Kamb Ramayan Bhag 1 by एन० वी० राजगोपाल - N. V. Rajgopal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के ४ +; के. कब रामायण ( मेरी इस भूखंता पर ) संसार मेरा उपहास करेगा ओर इससे मेरा अपयश होगा; फिर भी मै रामचरित का गान करने लगा हूँ ; इसका प्रयोजन यही है कि सत्यज्ञान तथा अलौकिक प्रतिभा से संपन्न ( वाल्मीकि महर्षि ) के दिव्य काव्य का महत्त्व और मी अधिक प्रकट हो | जिन ( सदृहृदय व्यक्तियों ) के कान विविध प्रकार की रसमय कविता सुनने के आदी हो चुके हैं; उन्हें मेरी कविता उसी प्रकार ( ककश ) लगेगी; जिस प्रकार “याल (बीणा) के मधुर स्वर कौ सुनते हए सुग हो खड़े रहनेवाले अशुण* के कानों में 'पटह' ( चमड़े के ढोल ) की ध्वनि लगे | ८ काव्य, नाटक ओर संगीत-रूपी) त्रिविघ तमिल-बाझमय का जिन्होंने मली भाँति अध्ययन किया है; उन उत्तम विद्वानों और कबियों से में निवेदन करना चाहता हूँ “क्या उन्मत्तौ के वचनः मंद बुद्धिवालौं के वदन तथा भक्तजनों के वचनः इनकी परीक्षा करना उचित हौ सकता दै बालक ८ खेलते समय ) धरती प्र घरोंदे बनाते हैं, जिन में कोठ रियाँ; आँगन; ........... नृत्यशाला आदि स्थानों को कुछ टेढ़ी-मेद्री रेखाओं से दिखाने की चेश करते हैं ( उन्हें „+ देखकर ) क्या कुशल कारीगर ( उन घरोंदों के शिल्प-शास्त्र के अनुकूल न होने से ) छ्लुब्ध .. होंगे १. किंचित्‌ भी काव्य-ज्ञान से रहित मैं; जो यह छुद् काव्य रचने लगा हूँ, इस पर... क्या मर्मज्ञ विदान्‌ कध होगे ए पर देववाणी ( संस्कृत ) में जिन तीन महापुरुषों * ले रामायण की रचना की है, | उनमें प्रथम कवि वाग्मी ( वाल्मीकि) महिं की रचना के अनुसार ही मैंने तमिल-पद्यों में ॑ | 4 प ६: यह रामायण रची है धर्म-रक्ला के लिए, परम पुरुष ने जो अवतार लिये थे, उनमें से रामावतार का वर्णन करनेवाला यह प्रसिद्ध काव्य 'शडेयप्प वल्लर'* के ग्राम “^तिस्वेण्णेय नल्लूर ननित दा. (९) 1 ४ पर १, याल्‌ः एक प्रकारे की वीणा । प्राचीन तमिल-साहित्य मं याल्‌ का पराय उल्लेख हुआ है| यह माना _...... जाता था कि यालू का स्वर ठुनकर हिरन मंत्रमुग्बसा हो जाता था. और उसके बाद परह की ककश धनिका वह सहन नहीं कर सकता था भौर कमी-कमौ वेसी ध्वनि सुनने पर अपने आाण भी छोड़. देता या 4 के आरंम में कई स्थानों में किया है स उन्होने महाकनि कंवर को आश्रय दिवाथा। में भी रहे पे, तथापि अपने प्रथम साश्रयदाता .




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