भूदान गंगा | Bhoodan Ganga

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Bhoodan Ganga by निर्मला देशपांडे - Nirmala Deshpaande

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२८ सूदान-गंगा तौर पर ही सुखें इसका भोग मिल सकता है । आन विज्ञान इसी तरह की भावना लारहदाहै। दुनिया एक हो रही है आज छोटे-छोटे सवाछ भी एकदम अन्तर्रट्रीय बन जाते हैं । हम यह नहीं कह सकते कि यह हमारा घर का सवाल है । लोग कहेंगे कि यह तुम्हारे घर का सवाल है, पर उससे हमें तकलीफ होती है, दुनिया की शांति भंग होती है। मान लीजिये, कल अगर अमेरिका म लड़ाई शुरू हो जाय, तो उसका असर हिंदुस्तान के कुछ बाजारों पर पढ़ेगा । यहाँ के गरीब समझ ही न पायेंगे कि अनाज एकदम से महँगा क्यों हुआ । लड़ाई की ही बात नहीं; साधारण समय में भी अमेरिका सें कपास ज्यादा पैदा होने पर हिंदुस्तान के कपास के दाम पर परिणाम होता है, फिर चाहे यहाँ वद कम पैदा हो या ज्यादा । कपास अब सारी दुनिया की वस्तु बन गयी है । इस तरह दुनिया के किसी कोने में भी कोई सवाछ चेदा दोता है, तो ` उसका असर सारी दुनिया पर होता है। विज्ञान के कारण हम सव एक दूसरे के साथ इतने एकरूप हो रहे हैं कि “मैं और मेरा”, “तू और तेरा” भेद दी मिंट जायगा । आज आप यह चर्चा कर ले कि बल्लारी किप्त ग्रांत में जायगा । लेकिन चंद दिनों के बाद यह मूठ सवाल माना जायगा । जैसे आज तमिलनाड का नागरिक भारत का नागरिक हैं, उसे भारत भर में कहीं भी जाने और काम करने का हक हासिल है । इसी तरह आगे चलकर भारत का नागरिक दुनिया का भी नागरिक होगा । दुनिया का कोई भी मनुष्य किसी भी देश - में जाकर रह सकेगा और काम कर सकेगा । यह हालत बहुत शीघ्र आनेवाछी है । विज्ञान से धर्म बढ़ेगा इस तरह यह युग अहंता और ममता का छेद करने के लिए खड़ा है | इसलिए, जो छोटी-छोटी और संकुचित भावनाएँ रखते हैं; वे दोनों तरफ से मार खायेंगे । इधर से आत्मज्ञान का सिर पर प्रह्मर होगा और उधर से विज्ञान का पाँव पर । बहुतों को लग रहा है कि विज्ञान बढ़ रहा है; ' तो घर्म का कया होगा ! हम कना चाहते है किं इस तरह शंका करनेवाले धम को मानते ही नहीं । जब विज्ञान, इतना बढ़ रहा है तो अधर्म टिक न सकेगा और घम ही रहेगा |




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