भारतीय आर्थिक चिन्तन | Bharatiya Aarthik Chintan
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
512
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ह भारतीय आर्थिक विचारो की रूपरेखा
वव
याञ्ञवल्यय नारद वृहस्पति गौतम पाराशर हारीत वशिष्ठ की स्मृतिया उल्लेखनीय है ।
स्मृतियो मे आर्थिक विचारो को भी काफी महत्व प्रदानं किया गया दै]
(4) पुराण-इतिहास - इस साहित्य मे रामायण महाभारत तथा उपपुराणों
को शामिल किया जाता है। वायु अग्नि विष्णु वामन भागवत्त पुराण आदि ऐसे पुराण
हैं जिनमे अर्थव्यवस्था सबधी विचार पर्याप्त मात्रा मे मिलते है ।
(5) खण्ड काव्य व अन्य सरकूत साहित्य - इस श्रेणी मे कालिदास
कणभटट भास शूक दण्डी आदि फे ग्रन्थ तथा नीति सादित्य सम्मिलित किये जा
सकते है।
(6) ऐतिहासिक विचारक ~ मेगरथनीज हेनसाग फादियान तेथा इनवबूता
आदि विदेशी इतिहासकारो के अतिरिक्त अवुलफजल फरिश्त' वदाउनी आदि के ग्रन्थो
से आर्थिक विचारो का ज्ञान होता है इरी कड़ी मे कौटिल्य के अर्थशारत्न का उल्लेख
जरुरी है क्योकि उसमें राजनीतिक प्रणाली के साथ-राथ आर्थिक व्यवरथा के विशिष्ट
पक्षो थथा-उत्पादन वितरण मूल्य-नियत्रण सपत्ति का विनियमन कृषि वाणिज्य व
व्यवसाय की उन्नति व्यापारियो व उपभोक्ताओ के हितो का सरक्षण करारोपण तथा
समग्रत आर्थिक प्रणाली भे राज्य की भूमिका आदि का व्यवरिथत विवेचन किया गया है|
@) गुद्रारे तथा सिक्के ~ सिन्धु सभ्यता ते टी मुद्रा विभिन्न रुपो भे प्राप्त
हुई रै जिनसे जीवन रहन-राहन व्यापार व्यवसाय आदि के वारे मे जानकारी मिलती
रही है।
यह निर्विवाद शत्य है कि अभी तक भारतीय घाडगमय भे यत्र-तत्र विखरे हुए
आर्थिक विचारो का क्रभवद्ध अध्ययन नरं किया जा सका है । अतएव सामाजिक परिवर्तन
के परिवेश में ही आर्थिकं विचारो के विकास का अध्ययन रामीचीन जान पड़ता हैं। आर्थिक
विचार दैशकाल एव परिरिथतियो के अनुकूल वदलते र ओर विकसित होते रहे दै । यहा
पर भारतीय आर्थिक विचारो का विवेचन इरा तथ्य को ध्यान मे रख कर किया गया है ।
ज्ञान की किसी भी शाखा को वैज्ञानिक बनाने के लिए उसका विश्लेषणात्मक
अध्ययन तथा अनुशीलन कर सभी सामान्य परिस्थितियों मे खरे उत्तरने वाले मूलभूत
शाश्वत रिद्धातो का निरुपण आवश्यक है । प्राचीन आर्थिक विचारों मे सत्य का अभाव नहीं
है। अतएव तथाकथित वैज्ञानिकता का बहाना लेकर उन्हे उपेक्षित नहीं किया जा सकता
और न ही मानव जाति के ऐतिहासिक विकास क्रम से अलग किया जा सकता है। वैदिक
ग्रन्थो से सम्बद्ध आर्थिक विचार दर्शन धर्म एव नीतिशास्त्र रो रामन्वय रथापित कर आगे
बढे तथा सदैव विकास की ओर उन्मुख रहे, वरसुत सामाजिक एव आर्थिक जीवन फे
विकास के साथ आर्थिक विचारो का विकास क्रम भी चलता रहा है।
आर्थिक तथा रामाजिक विचारो का रावध
आधुनिक अर्थशास्त्री आज के वातावरण मे उत्पन्न समस्याओं जैसे मूल्य
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