रवीन्द्र पद्ध कथा | Raveendra Padh Katha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : रवीन्द्र पद्ध कथा - Raveendra Padh Katha

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मदन गोपाल जी - Madan Gopal Ji

Add Infomation AboutMadan Gopal Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
स्वीश्र-पद्य कथा न फागुन महीना है, वकुल-वन-वी थिका में दक्षिण पवन मतवाला सरसाया है मंजरित श्राज श्रास्रवन में हुआ मुकुल श्राज क्यो किसी कौ सुनने लगे भ्रमर-कुल गुन-गुन जाने मन ही मन क्या गुनते से गुजरित भङ्क घुमते स्वच्छुंद गंघाकुल भ्राज दल का दल पान सन्य मदमत्त कधुनपुरी मेँ होनी खेलने को श्राया है। वहं थी संध्याकाल की सुहानी मुटपुट वेला केशनपुरी कै रमणीय राजवन मै प्राकर खड़े हुए पठान उपवन मेँ छेड़ती है वंशी राग मुल्तानी धुन में एक लौ सुदक्ष तब दासियाँ रानी की ब्रह होली खेलने के लिए हो प्रसन्न मन में भुरमुद श्रोट में से री का-री का 'फॉकता-सा भूलता था राग-रंगारवि भी गंगत में । पग की धमक, धरम-घूम जाते घाधरेहै उड़े जाते भ्रोढ़ने है दविज्नन पवन में दाहिने हाथों में सब थाली लिए फाग की भूलती कि में पिचकारी रंग-राग की रुतक-सुनक इठलाती हुई चलती है चाएँ हाथ जल भरी भारी है गुलाब की उड़ रहे श्रोढ़ने हैं, बाँकी क्षत्राखियों का उमड़ रहा है दल भ्राज राजवन में ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now