दयोदयचम्पू | Dayodaychampoo

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ट ) हए षे दोनों विष-मिले लड्खाकर वह मी मर गहं । इस प्रकार -यांचवीं वार भी बह सोमदत्त मारे जनेसे षच गया। जब राजा ने यह सब समाचार सुने तो उसे सोमदत्त को देखने की उत्सुकता पेंदा हुई और उसने उसे राज-द्रबार में बुलाया । जब सोमदत्त वहां पहुँचा, तो राजा ने उसके असाधारण रूप- सौन्दर्यं को देख कर ओर खसे पुण्यशाली मानकर अपनी राजपुत्री भी उसे विवाह दी ओर आधा राज्य भी उसे दिया । इस प्रकार वह सोमदत्त अपनी दोनों स्त्रियो ॐ साथ बहुत समय तक आनन्दपूर्वक सुख भोगता रहा । एक वार एक सुनि- राज गोचरी के लिए नगर मे पधारे। सोमदत्त ने उन्हं पिगाहन कर भक्ति-पूर्वैक आहार दिया । मुनिराज ने उसे और उसकी दोनों स्त्रियों को सम्बोधित कर धर्म का उपदेश्च दिया ओर मनुष्यजन्म की महत्ता बतला कर उसके पूवं भव भी बताये । उन्हें सुनकर सोम- -दन्त ओर उमकी दोनों स्त्रियों को बहुत बैराग्य हुआ और सोमद्त ने मुनिदीक्षा और दोनों स्त्रियों ने आ्विका की दीक्षा ले ली । सोम- दन्त उम्र तपश्चरण कर सवाथसिद्धि में अहमिन्द्र उत्पन्न हुआ, ज्ञो वां से आकर मनुष्य होकर उसी मव से मोक्ष जायगा। दोनों स्त्रियों के साथ उस वेश्या ने भी दीक्षा ले ली थी । ये तीनों दी जीवन पर्यन्त विधि पूवक धर्म का आराधन कर संन्यास से देह का त्याग कर यथायोग्य स्वर्गों में गई' । दयोद्य का सारा कथानक दरिघेणकथाकोष के आधार पर लिखा गया है। पर इन दोनों में भी इस बात का कोई उल्लेख नदीं फिया गया है कि बह सोमदत्त पांच वार मरने से क्‍यों बचा और वषट वेश्या भी अकस्मात्‌ू ही क्यों पत्र की भाषा बदलकर उसके बचाने में सहायक हुई । इन दोनों बातों का उत्तर मे यश्शर्तिलिकचम्पू




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