सामुदायिक विकास और पंचायती राज | Samudayik Vikas Aur Panchayati Raaj

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Samudayik Vikas Aur Panchayati Raaj by पंडित जवाहरलाल नेहरू - Pandit Jawaharlal Nehru

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा श्रन्तिमि लक्ष्य ११ सकते हैं श्र उन्हें ऐसे जानदार स्त्री-पुरुषों की योजनाएं बना सकते हैं, जो कुछ श्रहम काम कर डालने के जोश से भरे भ्रौर प्रेरित हों । यही सवाल है । हम सही श्र लाजमी तौर पर रुपये-पैसे श्रौर साधनों का हिसाब लगाते हैं । श्रादमी को यह करना पड़ता है, वह मैर-जिम्मेदारी से काम नहीं कर सकता । मगर मैं यह कहूंगा कि ये सब कम जरूरी चीजें हैं । खास ग्रह्‌ मियत इनसे ताल्लुक रखनेवाले श्रादमी की है--उस शझ्रादमी की, जिसे काम करना है; जिसे महसूस करना है श्रौर अपने सोचे हुए को श्रमली जामा पहलाना है । कया श्राप उस तरह का इन्सान बनाने की कोशिया करेंगे ? वेशक, इन्सान मौजूद है) श्रापको उसके दिल श्रौर दिमाग़ को छूना-भर है । श्राप यह काम सलाह देकर नहीं कर सकते । मेरी वात मान लीजिये, बहुत ज्यादा सलाह मत दीजिये, काम को खुद कीजिये । दूसरों को श्राप यही सलाह दे सकते हैं । श्राप ऐसा करें ब्रौर दूसरे भ्रापके पीछे चले । श्राप ठेसा क्यों सोचते हैं कि श्राप विकास-श्रायुक्त हैं, इसलिए वड़े दफ्तर में बेठना श्रौर हुक्म जारी करना श्रापका काम है । मैं आ्रादर के साथ यह कहने की इजाजत चाहता हूं कि झगर श्राप ऐसा सोचते हैं तो श्राप बेकार हैं । श्रच्छा होगा कि आप श्र कहीं चले जायं शरीर कोई दूसरा काम करें । इस चारे में हमें साफ होना चाहिए । कोई विकास-शायुक्त हो या प्रदासक, उसे हमेदा श्रयने = ५ द्फ्त क यृ दफ्तर में वेठे रहना झौर श्रादेश जारी नहीं करते रहना चाहिए । दाल त [: 5 था पं >... स्द्राई शः दा हिए उस कुदाला हाय मे लगा चाहिए न्नार खुद्ाइ करना चाहिए बिन




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