महादेव भाई की डायरी | Mahadev Bhai Ki Dayari

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Book Image : महादेव भाई की डायरी  - Mahadev Bhai Ki Dayari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिल्ली अस्थायी संधि होनेके बाद हुमा था, इसी तरह ! रातको-- आधी यत्क्र बाद सब निश्चय हुआ; अर्विनने जिमर्सनते वेनको तार देनेको कहा और पिर आकर, कैठे । वे भी अदास और मैं भी शुदास । मैंने मीन तोड़ा और कहा--'देखिये; में तो बिल्कुल ठंढा हो गया हूँ । और देखता हूँ कि आपकी मी भैसी ही मावना हो रही है । झिसलिअ आपसे फिर प्रार्थना करता हूँ; फिर कहता हूँ कि मैं तो छड़ाका हूँ, मुझे तो फिर भी लड़ना पढ़ सकता है । आपको भी खाता हो कि कहीं जिस समझीतेमें फेंस गये, कमेंचारी कोओ समझौता चाहते नहीं; वातावरण प्रतिकूल है तो समझीता कैसा १ तो अब भी आप तार वापस छे छीजिये। जितना ही तो दोगा कि बेन मुझे सखे कहेंगे ।? तब सुन्होंने कहा --' नहीं, भैंसी कोओ वात नदीं 1. आपको ल्डना हो तो लड़ लेना । मगर लड़ेंगे तो गजिव तीर पर ही न! नहीं; नहीं, यह तो जो समझौता हो गया सो हो गया 1” आज पत्र नहीं भेजा था तब तक लगता था कि पत्र चछा जाय तो अच्छा । मगर अब पत्र चला गया; तो भेसा लगता है कि यह क्या जिम्मेदारी सिर पर ले छी है? . « . सम्भव दै कि अछूतेकि लिजे अलग मताधिकार तो अब नहीं रहेगा । नहीं तो यह भी हो सकता है कि सुझे छोड़ दें और फिर मरने दें!” मैंने कद्दा -- “ छोड़ देने पर तो जिस अनशने जितनी 'मारी खलबली मच सकती है; जिसकी जिन लोगोंको कच्पना भी न होगी ।” बापूने कहा - “ हँ। ” वर्छमभाओी सुबह कहने लगे -- ५ जित समय तो दो वर्ष पहले आज्के दिनि चण्डोल तालव पार कर गये थे 1” श्द्राओीको दो १२-२३-३२ शठ हो गये । वीमे अक छोयसा विष्कंमक -- खाटी समय -- आ गया । वल्लमभाओ वापुको रखानेमे कषर नदीं रखते | आज पने रो -- ८ कितने खजूर धो्ूँ १ वापने कदा -- ५ पन्द्रह ” । तो वल्लममाओी बोठे -- ५ पन्द्रह ओर बीसमें क्या फर्क १» वापूने कहा -- « तो ‹ दूस >, वर्योकि दस ओर पद्मे षया फ १४ मुझे कहने छो -- “क्यों महादेव, कैसी जेट है १ धर कोमी विस्तर करके सुखाता या १ कमोड धोकर रोज तड़के ही कोओ रखता था १ ओर योस्थ्की हयी रोटी, मक्खन, दूध और तरह तरहकी तरकारियों ! ” मैं तो किस तर फूल सकता था१ मेरे सामने तो नासिकके लेलरोकि चित्र अब भी ताज़ा थे, और यह वात क्षणमर भी भूलने जैसी नहीं थी कि यहीं जो कुछ है, सब वाएके कारण दै १ ` अक वात पे ठिनके सवादकी रहे गयी .। वापुने कद्दा -- “यहाँ तो से मदख्की गादी पर सुलाते हैं। तुम्हें यहाँ ढायेंगे, यह मुझे आशा न थी । ९




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