नामए - हरम | Namae - Haram

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Namae - Haram by लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महिलाश्रोकी शादइरी--श्रस्तर १७ इधर तही है सुबू, उस तरफ़ तदी सागर! वह ॒बादा-रेज़िए-महफ़िल्की _ सुबहो-शाम कहाँ ? मिटे हुएसे हैं कुछ नक्रो-र्पौ ज़रूर मगर रहे - तख्वमे ` वह॒ याराने - तेज़गाम' कहाँ ! नवाए -वंक्तं बहुत गुरफ्रिशोँ सही ठेकिन वह॒जाँ नवाज़ मुहब्बत अदा, पयामं कहँ ! रामीमे-शामे-सुहब्बतको ˆ क्या कर 'अह्तरः ! नसीमे-पुबहे-तमन्नाका वह॒ खराम'' काँ १ गरजख जिसमे सषरे - दर्द - गमे - आरिक्री ` नहीं वोह जिन्दगी, तो मौत है, वोह ज़िन्दगी नहीं जिसमे बराए - रास्त * हो उनसे मुजामला वल्छाह ! ऐन होश है, वोह बेखुदी नहीं क खने-अन्दरीवके * दमसे थी सब बहार पूरो अव वोह रंग नहीं, दिलकशी ` नहीं १. सदिराका घडा खारी ह, २ मदिराका प्याखा रिक्त है, ३. मदिरा-पानसे परिपूर्ण, ४ चरणचिह्ल, ५ प्रेम-मार्गमे, ६ गीघ्रनामी, ७ समयका गीत, ८ सुहावना, ९. जीवन-सचारक प्रेम-सन्देग, १०. सन्ध्या कालीन सुगन्धको, ११ आदा रूपी प्रात काटीन चाक, १२ प्रेम व्यथाओ- का नशा, १३ सीधा सम्बन्ध, १४ वेहोगी, १५ वुलवबुलके बलिदानके, १६ आकर्पण ।




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