त्रिपथगा | Tripathaga
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वक-संहार
[ २४ |
्रवखा जनों की एक दिन
हू छाज रहनी भी कठिन,
जिनके छिए पर पुरुष-मय संसार ह ।
यदि ने 'झनाथा हों यहाँ,
तो फिर कुशल उनकी कहां ?
प्रत्येक पद पर विपद्-पारावार हे ।
[ २५ |
कं काम सङ्कट में सरे,
इस हेतु धन-रक्षा करे;
उारादि की रक्षा करे धन से सदा,
धार यह अति शिष्ट है,
पर, श्रात्मरक्षा इष्ट है;
धन से तथा दारादि से भी स्वंदा।
१५
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