त्रिपथगा | Tripathaga

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Tripathaga by मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वक-संहार [ २४ | ्रवखा जनों की एक दिन हू छाज रहनी भी कठिन, जिनके छिए पर पुरुष-मय संसार ह । यदि ने 'झनाथा हों यहाँ, तो फिर कुशल उनकी कहां ? प्रत्येक पद पर विपद्‌-पारावार हे । [ २५ | कं काम सङ्कट में सरे, इस हेतु धन-रक्षा करे; उारादि की रक्षा करे धन से सदा, धार यह अति शिष्ट है, पर, श्रात्मरक्षा इष्ट है; धन से तथा दारादि से भी स्वंदा। १५




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