कोटा राज्य | Kota Rajya

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.39 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कोटा राज्य श्प्र
कचहरी मे रहता था श्रौर प्रति वष॑ दीवान के पास भेजा जाता था । खर्चे के
मुख्य मद--पुण्याथ, दरगाही, हनूरीकातन राजलोक, महल, कारखाना, बोहरा
को देना, देश का खर्च, श्रटाला, श्राम्बार, सेना श्रादि थे । बेगार प्रथा द्वारा भी
राजकीय कार्य होता था । बेगार में प्रत्येक बेगारी को जबरदस्ती कार्य करना
पडता था श्रौर उसे केवल पेट-पूरति के लिए नाम मात्र पैसे दे दिये जाते थे ।
राजपूताने मे जागीर प्रथा का यह एक विजेष झग था ।
न्याय हिन्दू प्रणाली से किया जाता था । परम्पराश्रो को दृष्टिकोण मे रख
कर ही दड दिया जाता था । गाव की पचायतो को दण्ड देने का श्रघिकार था ।
उनकी श्रपील हो सकती थी । प्रत्येक परगने के मुख्य गाव मे कोतवाली का
'चबूतरा होता था । कोतवाल ही श्रपराघियो को पकडता था श्रौर वही उनको
दण्ड देता था । न्याय विभाग कोई प्रथक नहीं था । चौधरी, कानूगो श्रौर
ठाकुर से भी न्याय करने की प्रथा थी । शिकायतों की सुनवाई होती थी ।
कोगजी कार्यवाही कम होती थी । चोरी, डर्कती श्रौर हत्या के श्रपराधियो को
प्राय श्रग-भग व प्राण-दण्ड ही दिया जाता था । छोटे अपराधों का श्रर्थ-दण्ड
दिया जाता था । व्यभिचार पर दण्ड जुर्माना होता था । राज-नियम का भग
करना घोर भ्रपराघ माना जाता था । राजा की कोप हष्टि होते ही उस व्यक्ति
का सर्वेलाश हो जाता था । तोप से उडा देना, सिर कटवा देना, हाथी के नीचे
कुचलवा देना राजा के बाए हाथ का खेल था । इसके विरुद्ध कही श्रपील नहीं
की जा सकती थी।
सेना का श्रध्यक्ष फौजदार कहलाता था । कोटा की सैनिक व्यवस्था मुगल
व्यवस्था से मिलती-जुलती थी । कोटा की सेना मे भी फोजदारी, फीलखाना,
छुतुरखाना, रिसाला, तोपखाना, हरावल श्रादि होते थे । सेना मे दो प्रकार के
सिपाही थे । एक तो जामीरदार भेजते थे जिनका खर्चा स्वय जागीरदार देते
थे । दूसरे महार।व स्वय भर्ती करते थे । महाराव का यह कार्य फौजदार
करता था । जालिमसिंह के पहले स्थायी सेना सुव्यवस्थित रूप से रखने की कोई
प्रसाली नही थी । जालिमरसिह ने छावनी (भालावाड) मे स्थायी सेना का मुख्य
केन्द्र स्थापित किया । कवायद, शिक्षा, श्रनुशासन से सैनिक सगठन में सुधार
किपें । हाथी, घोडे, ऊटो का प्रयोग सेना मे होता था । अधिकतर घोडे काम में
लाए जाते थे । पैदल सैनिक को युद्ध की पूर्ण शिक्षा दी जाती थी । श्रघिकतर
सैनिक लोहे के कवच श्रौर टोप पहनते थे । तछवार, ढाल, वर्छी, भाला व तोप
काम मे लाए जाते थे । कोटा के मुख्य किलो का जीर्णोद्धार करवाया जाता था
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