कोटा राज्य | Kota Rajya

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Kota Rajya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोटा राज्य श्प्र कचहरी मे रहता था श्रौर प्रति वष॑ दीवान के पास भेजा जाता था । खर्चे के मुख्य मद--पुण्याथ, दरगाही, हनूरीकातन राजलोक, महल, कारखाना, बोहरा को देना, देश का खर्च, श्रटाला, श्राम्बार, सेना श्रादि थे । बेगार प्रथा द्वारा भी राजकीय कार्य होता था । बेगार में प्रत्येक बेगारी को जबरदस्ती कार्य करना पडता था श्रौर उसे केवल पेट-पूरति के लिए नाम मात्र पैसे दे दिये जाते थे । राजपूताने मे जागीर प्रथा का यह एक विजेष झग था । न्याय हिन्दू प्रणाली से किया जाता था । परम्पराश्रो को दृष्टिकोण मे रख कर ही दड दिया जाता था । गाव की पचायतो को दण्ड देने का श्रघिकार था । उनकी श्रपील हो सकती थी । प्रत्येक परगने के मुख्य गाव मे कोतवाली का 'चबूतरा होता था । कोतवाल ही श्रपराघियो को पकडता था श्रौर वही उनको दण्ड देता था । न्याय विभाग कोई प्रथक नहीं था । चौधरी, कानूगो श्रौर ठाकुर से भी न्याय करने की प्रथा थी । शिकायतों की सुनवाई होती थी । कोगजी कार्यवाही कम होती थी । चोरी, डर्कती श्रौर हत्या के श्रपराधियो को प्राय श्रग-भग व प्राण-दण्ड ही दिया जाता था । छोटे अपराधों का श्रर्थ-दण्ड दिया जाता था । व्यभिचार पर दण्ड जुर्माना होता था । राज-नियम का भग करना घोर भ्रपराघ माना जाता था । राजा की कोप हष्टि होते ही उस व्यक्ति का सर्वेलाश हो जाता था । तोप से उडा देना, सिर कटवा देना, हाथी के नीचे कुचलवा देना राजा के बाए हाथ का खेल था । इसके विरुद्ध कही श्रपील नहीं की जा सकती थी। सेना का श्रध्यक्ष फौजदार कहलाता था । कोटा की सैनिक व्यवस्था मुगल व्यवस्था से मिलती-जुलती थी । कोटा की सेना मे भी फोजदारी, फीलखाना, छुतुरखाना, रिसाला, तोपखाना, हरावल श्रादि होते थे । सेना मे दो प्रकार के सिपाही थे । एक तो जामीरदार भेजते थे जिनका खर्चा स्वय जागीरदार देते थे । दूसरे महार।व स्वय भर्ती करते थे । महाराव का यह कार्य फौजदार करता था । जालिमसिंह के पहले स्थायी सेना सुव्यवस्थित रूप से रखने की कोई प्रसाली नही थी । जालिमरसिह ने छावनी (भालावाड) मे स्थायी सेना का मुख्य केन्द्र स्थापित किया । कवायद, शिक्षा, श्रनुशासन से सैनिक सगठन में सुधार किपें । हाथी, घोडे, ऊटो का प्रयोग सेना मे होता था । अधिकतर घोडे काम में लाए जाते थे । पैदल सैनिक को युद्ध की पूर्ण शिक्षा दी जाती थी । श्रघिकतर सैनिक लोहे के कवच श्रौर टोप पहनते थे । तछवार, ढाल, वर्छी, भाला व तोप काम मे लाए जाते थे । कोटा के मुख्य किलो का जीर्णोद्धार करवाया जाता था




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