गृह - विज्ञान | Grih -Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ ७ ज # करने की क्षमता होनी चाहिए । किसी मी श्रवस्था मे उसमे यह योग्यता होनी . ` चादिए कि वह प्रात वस्तुश्नां का श्रधिकाधिक सुन्दर उपयोग कर सके । इस. गुण विशेष के आधार पर उसे परिवार के व्यक्तियों के स्वास्थ्य की श्रोर यथेष्ठ ध्यान देना. चाहिए। उसकी .गह-व्यवस्था सुचारु श्र नियमानुकूल होनी चाहिए । ग्रहिणी का मितव्ययी होना श्रावश्यक है किन्तु उसे यह भी ज्ञान होना चाहिए कि उसकी मितव्ययिता न तो कृपणता. की सीमा तक पहुँच जाए. श्ौर न फिज़ूलखर्ची की ही । इन दोनों के मध्य में किस केन्द्रबिन्दु पर उसकी योजना स्थिति रहे यह प्रत्येक चतुर हिणी स्वयं ही समम सकती है । बच्चों को श्रच्छी आदतें डलवाना श्र अच्छी शिक्षा देना तथा नौकरों श्रादि के. साथ उनकी तर ्रपनी दोनों की ही सुविधाएँ देखते हुए ठीकटीक व्यवहारं करना ' और उनसे ठीक समय पर ठीकृ कायं करवाना मी ग्रहिणी का ही कार्य है। यह सब ` कुष्ठं करके दी गृहिणी प्रर में सुख शान्ति बनाए रख सकती है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि सुखी गस्य जीवन बननि का मार पूण॑तया ग्दिणी पर ही है शरोर उसे श्रपने कतव्य को यीक ढंग से समझना भी चाहिए । मानव के जीवन के दो भाग होते है। मानवशरोर श्रौर मानवमन इन दोनों को मिला कर ही किसी भी मनुष्य का व्यक्तित्व बनता है। यदि शरीर सुखी एवं स्वत्थ हो न्तु मन चिन्तित एवं दुःखी हो तो मानव सुखो नहीं का जा सकता है। इसी प्रकार यदि सदी प्रकार के मानसिक सुख होते हुए भी शरीर श्रस्वस्थ रहता ह्यो तो मन सुखी रह दी नहीं सकता है श्रतः सुखग्रति के लिए न केवल अपना ही वरन परिवार के सब ही सदस्यों के शरीर स्वस्थ होने चाहिए । परिवार के किंसी मी व्यक्ति का शरीर रोगी होने पर सारे परिवार पर चिन्ता की छाया पड़ जाती है अतः ग्रहिणी का सबंप्रथम कतंब्य है कि वह परिवार के सब 'ही सदस्यों के भोजन-पान का पूरापपूरा ध्यान रखे ताकि सब ही व्यक्ति स्वस्थ रह सकें । ऐसा कर पाने के लिए उसे मोजनबिज्ञान तथा पाककिया दोनों का. ही मली प्रकार ज्ञान होना श्रत्यन्त आवश्यक है । यही नहीं, स्वयं गर्भवती ` शेन पर उसे अपनी भावी सन्तान के स्वास्थ के लिए, जो कुछ करना उचित है वह भी जानना चाहिए तथा मातृविज्ञान का भी जानना उसके लिए:




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