ज्ञानसार | Gyanasar
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
620
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुनिश्री भद्रगुप्तविजयजी - Munishree Bhadrguptvijayji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कनाडा म जश्वत्त वचन था । गुर्देव वी सौम्य और वात्सत्यमयी मुप-
मुद्रा उसका दृष्टि मे तरती रहती हूं । उसका मन गुष्देव का सान्निध्य पाने
को सरसता है । खा+-पीन म गौर खेलने कुदन में उसवी कोर्ट रुचि नहीं
रही । उसका मन उदास हो गया । बारवार उसकी आँखे भर आती थी |
अपने प्यार पुत्र वी उत्वट घमभावना देख माता पिता वे हृदय में भी परिवतन
भाया । जशवत्त वो लेकर वे पाटण गय 1 गुरुदेव श्री नयविजयजी बे चरणा
मे जगवत को समपित्त कर दिया।
शुभ मुहूत म जशवत की दीक्षा हुई । जगवत “मनि जशविजय' वन गया ।
याद म जशविजयजी “यशोविजयजी' नाम से प्रसिद्ध हुए ।
छदा भाई पथसिह भी ससार त्याग कर श्रमण वना) उका नाम
पद्मविजयं रखा गयां । यदाचिजय और पश्मविजय कौ जोडी श्रमण सधम
पोभायमान वनी रही । जस राम भौर लष्मण 1
साघु थनकर दाना भाई गुष्सेवा म और नानाम्यास मे लीन हा गय॑ ।
दिन रात उनका साधनायन चलता रहा! वि स १६९९ मे व अहमटाबाद
पधारे । वहा उहान गुव्ाज्ञा से अपनी अपूव स्मृतिराक्तिका परिचय देनेवारे
अवधान प्रयोग कर दिवाये । यशोविजयजी की तेजस्वी प्रतिभा देख कर,
श्रेप्ठिरसन धनजी सूरा अत्यत प्रभावित हुए। उदाने गुरुदेव श्री नयविजयजी में
पास आकर विनती थी
गुरुदेव, श्री यज्ञाविजयजी सुयाग्य पात्र हैं । वुद्धिमानू हैं और गुणवान
हूँ । य दूसरे हेमचद्रसूरि बन सकते है । माप उनका काशी भेजें भौर पड
दर्शन वा अध्ययन करायें ।'
गुष्देव न बहा 'महानुभाव, आपकी बात सही है। मैं भी चाहता हू
ङि यगोविजयजी, विच्चाघाम दासी म जाकट अध्ययन बरें, परतु वहां मे
पहित पसर स्वि विना अघ्ययन नही वराते हं 1
धाजी सूरान ष्टा शुरुदेव, आप उसकी जरा भी धिता नही रे ।
यदोयिजयजी ये अध्ययन भ जितना भी पच करना पढ़ेंगा, यह ग भष्गां
मेरी सपत्ति का सदुपयोग होगा । ऐसा पुष्यलाम मरे भाग्य म कहा ?/
एक दिन यशाविजपजी गौर विनपविजयजी ने, गुख्नेवं के झागीवदि ले
कर, कानी की मर प्रयाण र दिया 1 बाली पहुचपर पट्दगन के प्रका
दिद्वानू भट्टाचाप के पारा अध्ययन प्रारम्भ गर दिया । भट्टाचार्प मे पास टूगरे
७०० छात्र विधिघ देना या एव धमस्व का अप्ययन करते थे । तजस्यी
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