लिली | Lili

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Lili by श्रीसूर्यकान्त त्रिपाठी निराला - Shree Soorykant Tripathi Nirala

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

Add Infomation AboutShri Suryakant TripathiNirala'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१८ लिली , ज्ञी 1 छोटा चिलम रखकर दौड़ा । “जज साहब से मेरा नाम लेकर कना, जल्द चुज्ञाया हे 1 “और मैया बाबू को भी बुला लाऊँ १ “'नहीं-नहीं ।” रमेश्वरजी की पल्ली ने डटि दिया । (५) जज साहब पुत्र के साथ बैठे हृए वातीलाप कर रहे थे । इँगलेंड फे मागे, रहन-घहनः, भोजन-पार, अद्‌ब-कायदे का बयान कर रहे थे ! इसी समय छीटा बंगले पर दाज्धिर हुआ, आर सुककर सलाम किया । जज साइब ने आँख उठाकर पूा--'केसे आए छीटाराम ?” “हुजूर को सरकार ने बुलाया हे; श्र कहा है, बहुत जल्द दाने के लिये. कहना ।” “प्क्यों ??” ` न्बौबी रानी बीमार हैं, डॉक्टर साहर श्राए थे, श्नौर हुूर...” बाक़ी छीटा ने कह दी डाला था । “बोर क्या ?” हु्षर...” छीटा ने दाथ जोड़ लिए । उसकी आँखें डब- डवा आह । ' जज साहब बीमारी कड़ी समककर घबरा गए । डाइवर को बुन्ाया । छीटा चल दिया । डाइवर नदी था । जज साष्टव ने राजेंद्र से कहा-- जाश्रो, माटर ज्ञे भारो । चले, देखं क्या बात है ॥»




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now