आंचलिक उपन्यासों में लोक संस्कृति | Anchalik Upanyason Me Lok Sanskrity

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Anchalik Upanyason Me Lok Sanskrity by माताबदल जायसबाल - Matabadal Jayasabal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11 1 चलिक उपन्यातोंमरे लीक सस्ति का चित्रण महत्वपूर्ण स्थान रखता है और यह लोक संस्कृति अचलिक उपन्यासो की सर्वाधिक महत्तपूर्ण क्विष्ता है । इनी लौक्सांत्कतिक तत्व ने अचलिकं उपन्यातों को अपलिक्ता का स्वस्प दिया है । लोक सस्ति के अन्तर्गत पात्रों के रहन-तहन, खान ~ पान वेषामषा; रीति रिवाज, धार्मिक स्थिति, तोक्माषा इत्यादि आते दै; {जनसा चित्रण अचलिक उपन्यानं म क्िधस्पतिपाया जाता है । अँएचलिक उपन्थासकार लोञ्जीदन कैः जितत निक्टता' स्वं टपापक्ता मे देखता ओट उपन्यासो म अक्ति करता है उतना अन्य उपन्याततकार नहीं करता । स्ति शी अवन के लोगो के धार्मिक विश्वास हुवे स्वान के ल्मे. फ किवासों से किसी न किसी सीमा तक अलग होति हं | उनके प्रणार मो धार्मिक कितवासो ढी मति ऊचतिक किष्षताओं ते यक्त हेती ह | इन क्विवातों अर प्रथा का पात्रों ढे चरित्र विकास प महत्कर्म पौग होता है जो पात्रों के उतलिप तथा उपन्यातकार ठे कणन दोनों मैं देवा जाता है। ध्वन्पाल्मक शब्दों का प्रयोग थी अचलिक उपन्यातों प्र चत्र तत्र देख को मिलता है। ध्वनि स्यः का एक उदाहरण निम्नलिखित है ज़िनागो विन्न; तिरिनागौ तिस्ना । पिनक थिनता तिरकटग दम्था 1 आटि चलहू तकि कुक धाम चह - पिन्ना तिन्ना नधि ववन्मा 11 च = कातीशवर' नाव देषु वरती. परिक्या पणत 105 ॥




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