रोटी का सवाल | Roti Ka Sawal

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Roti Ka Sawal  by पं. कालिकाप्रसाद - Pt. Kalikaprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा धन ५६ ` लेते हैं। कोयलेकी सुब्यवस्थित खानोमें सौ खनिकोंकी मेहनतसे हर साल इतना कोयला निकल श्राता है कि दस इजार कुदम्बोंकों सरदीके दिनींमें कापी गरमी मिल सके | हालं मे ही एक श्रद्‌ युत दृश्य देखनेमे श्राने कभा है । वह यह कि श्रन्तराषट्रीय भरदशंनि्यकि श्रवसरपर कुदं मासमे टी शके शहर बस जाते हैं । उनसे राष्टोके नियमित कायम जरा-ठी मी बाच नहीं पड़ती । भले दी उद्योग-घन्घों या कृषिमे--नहीं-नहीं, इमारी सारी सामाजिक स्यवस्थामे--श्मरि पूवंजोके परिश्रम श्रौर श्राविष्कार्तेका लाम मुख्यतः सुद्दीमर लोगोंको दी मिलता हो; फिर भी यह बात निर्विवाद है कि फौलाद श्रौर लोके उपलभ्ध प्राणिर्योकी मददसे श्राज मी इतनी सामग्री उत्पन्न की जा सकती है कि हर एक श्रादमीके लिए सुख श्रौर सम्पन्नताका जीबन खम्भव हो जाय । वस्तुतः हम समृद्ध हो गये हैं । हमारी सम्पत्ति, इम जितनी समभते हैं, उठसे कही ज्यादा है। जितनी सम्पत्ति हमारें श्रधिकार्रमे श्रा चुकी है वह मी कम नही है। उससे बड़ा वह धन है जो इम मशीनों-द्वार पैदा कर सकते हैं । हमारा सबसे बड़ा धन बह हैं जो इम श्रपनी भूमिसे विज्ञान-द्वारा श्रौर कला-कौशलके ज्ञान से उपाजन कर सकते हैं, बशर्तें कि इन सब साधनोंका उपयोग सपके सुखके लिए किया जाय । ५: हमारा सम्य समाज धनवान है । फिर श्रधिकांश लोग गरीब क्यों हैं १ साधारण जनताके लिए यहं श्रष्य पिसाश्क्मोदहै १ जव हमारे चारों श्र पूवजोकी कमाई हुई सम्पत्तिके ढेर लगे हुए हैं धर जब उत्पत्ति के इतने जबरदस्त साधन मौजूद हैं कि दुछ घण्टे रोज मेहनत करनेसे ही सबको निश्चित रूपसे सुव-सुविधा प्राप्त हो सकती है, तो फिर अअच्छी-से-श्रच्छी मज पूरी पाने वाले श्रमजीवी को भी कलकी चिन्ता क्यों अनी रहती है १




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