महावीर का अर्थशास्त्र | Mahaveer Ka Arthashastra   

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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केन्द्र मे कौन ? मानव या अर्थ? विश्व की नई व्यवस्था अपेक्षित है । नया समाज, नई अर्थ व्यवस्था, नई राजनीति की प्रणाली, सब कु नया अपेक्षित है । इसलिए कि जो नया-नया चल रहा है, उससे संतोष नही है । जो नया करना चाहते है, वह पुराना भी है । हमारी इस परिवर्तनशील व दुनिया मे धौव्य, उत्पाद ओर व्यय एक साथ चलते है । धुव है, शाश्वत है और साथ मे परिवर्तन भी है । यह अनेकान्त का नियम है । परिवर्तन ओर शाश्वत--दोनो संयुक्त रूप से चलता है इसलिए नया कुछ भी नही होता । जो नया होता है, वह भी पुराना बन जाता है । जो पुराना है, उसमे भी खोज करे तो बहुत कुछ नया मिलेगा । मनुष्य की प्रकृति भगवान्‌ महावीर ने मनुष्य को व्याख्यायित किया । मनुष्य वाहर से तो एक विशिष्ट आकृति प्रधान ओर पशु से भिन लगता हे किन्तु मनुष्य की प्रकृति बहुत से प्राणियो से भिन्न नही है । प्रत्येक प्राणी के अन्तस्तल मे एक प्रकृति है ठम । मनुष्य की प्रकृति मे भी काम है । महावीर का वचन है--कामकामे । --यह पुरुष कामकामी है । काम उसकी प्रकृति का एक तत्व है । उसकी प्रकृति का दूसरा तत्व है--अर्थलोलुए--वह अर्थलोलुप है, अर्थ का आकाक्षी दै । मनुष्य की प्रकृति का तीसरा तत्त्व है--धम्मसद्धा । मनुष्य मे धर्म की श्रद्धा है, चरित्र की श्रद्धा है, आस्था है । मनुष्य की प्रकृति का चौथा तत्त्व है--सवेग । वह मुक्त होना चाहता है । ये मनुष्य की प्रकृति के चार तत्त्व है--धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । भारतीय चिन्तन मे चार पुरुषार्थ का समन्वय माना गया है । चार पुरुषार्थ को छोडकर हम मनुष्य की व्याख्या करे तो उसे समग्रता से नही समझा जा सकता । उसको समग्रता से समझने के लिए इस पुरुषार्थ चतुपयी को समझना जरूरी है । समन्वित दृष्टिकोण चाणक्य भारतीय राजनीति और अर्थनीतिं के एक प्रतीक पुरुष है । उन्होने कई




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