महावीर का अर्थशास्त्र | Mahaveer Ka Arthashastra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)केन्द्र मे कौन ? मानव या अर्थ?
विश्व की नई व्यवस्था अपेक्षित है । नया समाज, नई अर्थ व्यवस्था, नई राजनीति
की प्रणाली, सब कु नया अपेक्षित है । इसलिए कि जो नया-नया चल रहा है, उससे
संतोष नही है । जो नया करना चाहते है, वह पुराना भी है । हमारी इस परिवर्तनशील
व दुनिया मे धौव्य, उत्पाद ओर व्यय एक साथ चलते है । धुव है, शाश्वत है और
साथ मे परिवर्तन भी है । यह अनेकान्त का नियम है । परिवर्तन ओर शाश्वत--दोनो
संयुक्त रूप से चलता है इसलिए नया कुछ भी नही होता । जो नया होता है, वह भी
पुराना बन जाता है । जो पुराना है, उसमे भी खोज करे तो बहुत कुछ नया मिलेगा ।
मनुष्य की प्रकृति
भगवान् महावीर ने मनुष्य को व्याख्यायित किया । मनुष्य वाहर से तो एक
विशिष्ट आकृति प्रधान ओर पशु से भिन लगता हे किन्तु मनुष्य की प्रकृति बहुत से
प्राणियो से भिन्न नही है । प्रत्येक प्राणी के अन्तस्तल मे एक प्रकृति है ठम । मनुष्य
की प्रकृति मे भी काम है । महावीर का वचन है--कामकामे । --यह पुरुष कामकामी
है । काम उसकी प्रकृति का एक तत्व है ।
उसकी प्रकृति का दूसरा तत्व है--अर्थलोलुए--वह अर्थलोलुप है, अर्थ का
आकाक्षी दै ।
मनुष्य की प्रकृति का तीसरा तत्त्व है--धम्मसद्धा । मनुष्य मे धर्म की श्रद्धा है,
चरित्र की श्रद्धा है, आस्था है ।
मनुष्य की प्रकृति का चौथा तत्त्व है--सवेग । वह मुक्त होना चाहता है ।
ये मनुष्य की प्रकृति के चार तत्त्व है--धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । भारतीय
चिन्तन मे चार पुरुषार्थ का समन्वय माना गया है । चार पुरुषार्थ को छोडकर हम मनुष्य
की व्याख्या करे तो उसे समग्रता से नही समझा जा सकता । उसको समग्रता से समझने
के लिए इस पुरुषार्थ चतुपयी को समझना जरूरी है ।
समन्वित दृष्टिकोण
चाणक्य भारतीय राजनीति और अर्थनीतिं के एक प्रतीक पुरुष है । उन्होने कई
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