श्रीजैनसिद्धांत प्रवेशिका | Shrijainsiddhantapraveshika

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Shrijainsiddhantapraveshika by गौरीशंकर हरिचंद - Gaurishankar Harichand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) ६७ उपनय किसको कहते हें ? ६७ पृक्ष ओर साधनम दष्टान्तकी सदशता दि- खानेको उपनय कहते हँ । जैसे- यह परमत भी वैसा ही धूमवान है । ६८ निगमन किसको कहते हैं ! ६८ नतीजा निकारकर प्रतिक्ञके दौहरानेको नि- गमन कहते हैं। जैसे-इसलिये यह पर्वत भी अथिवान है । ६९ हेतुके कितने भेद हैं ? ६९ तीन है- केवलान्वयी, केवकन्यतिरेकी, जन्वय- व्यतिरेकी । ७० केवरान्वयी हेतु किसको कहते हे ? ७० जिस हेतुमें सिफे अन्वयदृष्टान्त हो । जैसे-जीव अनेकान्तखरूप है । क्योंकि सत्खरूप है। जो जो स- त्वरूपम होता है, वह २ अनेकान्तखरूप होता है । जेसै- पुद्धलादिक । ७१ केवर्व्यतिरेकी हेतु किसको कहते हे ? ७१ जिसमें सिर्फ व्यतिरेक दृष्टांत पाया जावे जैसें-




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