देवीचरित | Devicharit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
708
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषयाचुक्रम
पुत्र की इच्छा से दरिद्चन्द्र हारा वरुण को झाराघना, पुत्र
होने पर नरमेघ यज्ञ मे उसे वरुण को श्रपणा करने का सकत्प,
पुच्व-जन्म होने पर बलिदान का स्थगित करना, बड़े होने पर
भ्राणो के भय से पुत्र का वन मे मागना, चरुण का झाप देना,
दरिश्वन्द्र का शापचश रोगग्रत्त होना, वद्िष्ठ की प्रेरणा से
झुन.शेप नामक ब्राह्मण-पुत्र को बलि हेतु क्रय करना, यज्ञ
करना, भयाकुल शुन-शेप का -करुणक्रर्दन, विश्वासित्र का
श्रागमन, उसकी प्रेरणा से शुन शेप ह्वारा वरुण की श्राराघना,
चरुण का झागमन, झुन.शेप की मुक्ति, हरिश्र द्र का शापमोचन
हरिश्चन्द्र का प्रपने पुत्र रोहित को वन से बुलवाना, राजा का
झाखेट के लिए बन जाना, विश्वामित्र हारा उनका राज्य दानि
भे लेना--हरिश्चनदर -को विपत्ति में देख चशिष्ठ का क्रोघित
होकर शाप देना,“दिववासिन्न का सी शाप देना श्रौर दोनो का
क्रमश बगुला तथा श्राडी पक्षी होना, परस्पर युद्ध करना, श्रत
में ब्रह्मा द्वारा झाप-निवृत्ति करना व,
पजिस श्रहकार के कारण चशिष्ठ श्रोर विदवामित्र परस्पर श्रापित हुए, उसे
मिटाने फे लिए व्यास दारा देवी की झाराघना का उपदेश--
चदिष्ठ को मंत्राववरुण क्यों कहते थे, इसके प्रसग में राजा सिमि का
आख्यान -- - व । हि
राना निमि की श्रदवमेष यज्ञ को तैयारी कौर
कुलगुरु चडिष्ठ का इन्द्र के यहाँ निमत्रित होने के कारण सम्मिलित
' नहना, |
निमि दारा-गौतम को गुरु बताना श्रौर श्ररवमेध यन्न सम्पन्न करना, `
गुरं वशिष्ठ का लौटने पर निमि के यहं जना श्रौर श्रपना श्रनादर
- समभ फर निमि फो शाप देना,
-जनिमि का रुष्ट होकर वक्षिष्ठ को शाप देना एवं
,चद्चिष्ठ का ब्रह्मा फे पास यमन, उनके श्राइवासन श्रौर प्रेरणा से
मेंत्रा-वरुण, के शरीर मे वद्चिष्ठ का प्रवेश करना,एवं दे
चरुण के यहाँ उवं्ञी का श्रागमन, मंत्रा श्रौर वरुण दोनो का मुरंघ
म
7 ~
७
छद से दद तक
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