मध्यमा हिंदी पथ प्रदर्शक | Madhyama Hindi Path Pradarshak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम पत्र -न्रजमाघुरी सार १५ न ज = वर धन वाली विद्रलदास जी भी नन्द्दास जी की रचनाओं एवं मधुर संगीत पर मुग्ध भे! ध्रूवदास जी का नन्ददास के विषय में यह्‌ मत है :- नंददास जो कुछ कदमों राग रंग में पाणि । अच्छर सरल सनेह मम सुनत होत हिय जागि ॥ इनकी रचनाओं में अभी तक कुल १४ यंधथों का नाम लिया जाता ह! परन्तु अभी तक केवल गासपंचाध्यायी, अरमरगीत, अनेकाथमंजरी चनौर नाममाला चे चार पुस्तके दी प्रकाशित हृद हैं । इनके आधार पर दी हमें इनका स्थान अप्टछोप के कवियों में निर्धारित करना है । इनकी रचना “'रासपंचाध्यायी” में कला साकार हो उठी है; यही कारण है. कि इसे हिन्दी मे “गीतगोविन्द” कहा जाता है। इसके अतिरिक्त इनकी दो प्रमुख विशेतार है, भाषा की मधुरता २--शब्दों की सजावट । शब्द्‌ सजावट मे अपके समान हिन्दी मे केवल दो-एक दी अन्य कवि हैं । “नन्दद्‌स जडया चौर कवि गढिया” की उक्ति आज तक प्रचलित है जो आपको मौलिकता का परिचायक है. । भाषा-कोष के दृष्टिकोण से हिन्दी-कवियों में आपका स्थान बहुत ऊँचा है । “अनेकाथंमाला'' इसका प्रतीक है, जिसमे एक-एक शब्द के नेक अथ दिये गए हैं । गुणों के दृष्टिकोण से कवि में दो गुण माधुयं तथा प्रसाद्‌ की प्रधानता है । माधुयं तो इतना निखरा हुआ है. कि उसकी सरसता में ,मग्न होते देर नद्दी लगती । श्री प्रमुदयाल मीतल के शब्दों मे “्रत्येक पद्‌ मानो रंगर का एक गुच्छ है, पक्तियों मे न तो संयुक्तात्तर है ओर न लम्बे- चौडे समास दी” । | इस प्रकार हम देखते दै.कि नन्ददास साहित्यिक त्र के भाषा-कोष, शब्द-सजाबट, भाषा-माधुयं एवं संगीतमयता में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । | वास्तव मे अष्टद्धाप के कवियों में नन्ददास दी ठेसे कवि हैं जिन्होंने वद्‌ रचना के साथ-साथ विभिन्न शैलियों में भी कविता की हे. । सूरदास संगरसूरिभिपी ` ११




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