मध्यमा हिंदी पथ प्रदर्शक | Madhyama Hindi Path Pradarshak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
544
श्रेणी :
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No Information available about श्रुतसागर जी मुनिराज - Shrutsagar ji Muniraj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम पत्र -न्रजमाघुरी सार १५
न ज = वर धन वाली
विद्रलदास जी भी नन्द्दास जी की रचनाओं एवं मधुर संगीत पर
मुग्ध भे! ध्रूवदास जी का नन्ददास के विषय में यह् मत है :-
नंददास जो कुछ कदमों राग रंग में पाणि ।
अच्छर सरल सनेह मम सुनत होत हिय जागि ॥
इनकी रचनाओं में अभी तक कुल १४ यंधथों का नाम लिया जाता ह!
परन्तु अभी तक केवल गासपंचाध्यायी, अरमरगीत, अनेकाथमंजरी चनौर
नाममाला चे चार पुस्तके दी प्रकाशित हृद हैं । इनके आधार पर दी हमें
इनका स्थान अप्टछोप के कवियों में निर्धारित करना है ।
इनकी रचना “'रासपंचाध्यायी” में कला साकार हो उठी है; यही
कारण है. कि इसे हिन्दी मे “गीतगोविन्द” कहा जाता है। इसके
अतिरिक्त इनकी दो प्रमुख विशेतार है, भाषा की मधुरता २--शब्दों
की सजावट । शब्द् सजावट मे अपके समान हिन्दी मे केवल दो-एक
दी अन्य कवि हैं । “नन्दद्स जडया चौर कवि गढिया” की उक्ति आज
तक प्रचलित है जो आपको मौलिकता का परिचायक है. ।
भाषा-कोष के दृष्टिकोण से हिन्दी-कवियों में आपका स्थान बहुत
ऊँचा है । “अनेकाथंमाला'' इसका प्रतीक है, जिसमे एक-एक शब्द के
नेक अथ दिये गए हैं ।
गुणों के दृष्टिकोण से कवि में दो गुण माधुयं तथा प्रसाद् की प्रधानता
है । माधुयं तो इतना निखरा हुआ है. कि उसकी सरसता में ,मग्न होते
देर नद्दी लगती । श्री प्रमुदयाल मीतल के शब्दों मे “्रत्येक पद् मानो
रंगर का एक गुच्छ है, पक्तियों मे न तो संयुक्तात्तर है ओर न लम्बे-
चौडे समास दी” । |
इस प्रकार हम देखते दै.कि नन्ददास साहित्यिक त्र के भाषा-कोष,
शब्द-सजाबट, भाषा-माधुयं एवं संगीतमयता में अपना विशिष्ट स्थान
रखते हैं । |
वास्तव मे अष्टद्धाप के कवियों में नन्ददास दी ठेसे कवि हैं जिन्होंने
वद् रचना के साथ-साथ विभिन्न शैलियों में भी कविता की हे. । सूरदास
संगरसूरिभिपी `
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