धर्मरत्नोंद्योत | Dharmaratnodhyot

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Dharmaratnodhyot by प्रभुदयाल - Prabhudayaal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ (| 1 (4 न (<> ‰ रथम नमं पद श्रीमरहंत ! समवशारनपति त्रिजग मर्ह॑त ॥ श ग्रणमौ सहज सिद्ध जयवंत । वघुयुण आदिक छगुण अनंत॥६४॥ पणमो श्री आचार्यं उदार । दौ खदीक्षा शिक्षासार ॥ { , रणम उपाध्याय गुरुदेव । मिढे ख॒ञ्चासन्ञान वहु मेव ॥६५॥ मः ~ , घर्मरलोयोत । चीतरागदेवकी भक्तिसे सुख । श्रीजिनवर पद भक्तितें, अंतराय अनुभाग । सूकि जाय सह्जें लहै, वांछितार्थ बडभाग ॥ ५७ ॥ श्रीजिनवर पदं भक्तितै, है विशुद्ध परिणाम । ततिं पाप कटे प्रगट, पुण्यास्तव अभिराम ॥ ५८ ॥ श्रीजिनवरपद भक्तिते, सातावेदनि आद्‌ । पुण्यप्ररृति अनुभाग बडु, वधे सु सुख आडाद ॥ ५९ ॥ चुर खिति अनुमाग युतः है जरह पुण्यनिकेत । तहँ सव सामग्री सहज, मिरे यु निज सुखदेव ॥ ६० ॥ श्रीजिनवर पद भक्तितैं, पापप्रकृतिके माहिं । थिति अनुभाग घटै सहज, कष्ट रहे कछु नाहिं ॥ ६१॥ प्रकृति असाता पलटिके, होय सुसाता रूप । श्रीजिनेद्र पद भक्ति, सदज सुखी चिद्रूप ॥ ६२ ॥ नवदेवतानमस्कार । वंद पंचौ परम पद, चैत्य-चैत्यगरह सार । जेनधरम वच उरधरौ, दिढ उपासना धार ॥ ६३ ॥ चोपाई । 9 न 0 चा र अ~~ 4-८-८4




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