धर्मरत्नोंद्योत | Dharmaratnodhyot
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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‰ रथम नमं पद श्रीमरहंत ! समवशारनपति त्रिजग मर्ह॑त ॥
श ग्रणमौ सहज सिद्ध जयवंत । वघुयुण आदिक छगुण अनंत॥६४॥
पणमो श्री आचार्यं उदार । दौ खदीक्षा शिक्षासार ॥
{ , रणम उपाध्याय गुरुदेव । मिढे ख॒ञ्चासन्ञान वहु मेव ॥६५॥
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घर्मरलोयोत ।
चीतरागदेवकी भक्तिसे सुख ।
श्रीजिनवर पद भक्तितें, अंतराय अनुभाग ।
सूकि जाय सह्जें लहै, वांछितार्थ बडभाग ॥ ५७ ॥
श्रीजिनवर पदं भक्तितै, है विशुद्ध परिणाम ।
ततिं पाप कटे प्रगट, पुण्यास्तव अभिराम ॥ ५८ ॥
श्रीजिनवरपद भक्तिते, सातावेदनि आद् ।
पुण्यप्ररृति अनुभाग बडु, वधे सु सुख आडाद ॥ ५९ ॥
चुर खिति अनुमाग युतः है जरह पुण्यनिकेत ।
तहँ सव सामग्री सहज, मिरे यु निज सुखदेव ॥ ६० ॥
श्रीजिनवर पद भक्तितैं, पापप्रकृतिके माहिं ।
थिति अनुभाग घटै सहज, कष्ट रहे कछु नाहिं ॥ ६१॥
प्रकृति असाता पलटिके, होय सुसाता रूप ।
श्रीजिनेद्र पद भक्ति, सदज सुखी चिद्रूप ॥ ६२ ॥
नवदेवतानमस्कार ।
वंद पंचौ परम पद, चैत्य-चैत्यगरह सार ।
जेनधरम वच उरधरौ, दिढ उपासना धार ॥ ६३ ॥
चोपाई ।
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