उपदेश - रत्न - कोष | Upadesh Ratn Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
53
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उप केश-रत्स-कतेब |. ॐ
मिल सकेगप, नोर खुरली सामे, वाले, त्था बिन्दा करने
वज्ञ को, ऊषर कहे दुप: सद्धुष्य की निन्दा करने का बहाना
भी न मिल सकगा।
कलिकाल कार्मा कुछ नहीं चल सकता ॥!
नियमिज्जइ नियजीहा अधि आरिअिं नेव किज्जएकज्ज
नकुलकम्मा अ लुप्पहे कुवि कि कुणइ कलिकालो ५४
नियमनीया निनजीड़ा अधिचारितं 'नेव करणीयकृत्यं |
न कुल क्रमश्च लापनोीय: कुपितः कि करोति कलि कालः ॥
भअथ--झपनी जीम को कश में रखिये. कभी भी. बिना
स्गोचे समभे काम न करिये, झौर कल्ाचार को न लोपिये तो
सालात्ू कोपायमान कत्ति भी कया ऋर खसक्ता है? कुछ नहीं |
वित्रैचन--ज असत्य निन्दारूपङ्गशवद्धक, सथा निर-
थक, चनन बोलते, बितंमाषी होने की हादिक इच्छा
जगे, दव्य. त्ते. काल. भाव, सम्दन्धी विचार किये बिना
करोर न्य न कर्ने की. ध्यानपरं रहे, श्रौर विना किम्नी बडे
परो कार के कलाचार न लोपने की सावधानी रहे तो कितनी
भी कड़ी शत्रता वाला बरी भ्ल न दे सके, क्योंकि जो :
निश्यय श्रौर व्यवहार से पत्िन्न हैं उन धुर्य के शन्न भी
मित्र बन ज्ञात हे ।
सज्जन का राह |
मम्मन उलबिज्जइ कस्स वि आल न दिज्जह कऋयावि
को वि न उकको सिज्जह सज्जण सग्गों इसो दुर्गो।।
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