गांधी और गुरुदेव | Gandhi Aur Gurudaev
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्य . ७
यदि गुरुदेवसे कहा गया होता कि आप बुद्धकी
मति वनाजियें अथवा अनका चित्र अंकित कीजिये, तो वे
यसी मति या चित्र बनाते जिसमें बुद्धके मुख पर
विराजमान शान्तिकी -- जुस शान्तिकी जिसे मनुष्य
जीवन-संग्राममें विजयी होकर ही प्राप्त करता है ---श्चलक
देखनेवालेको मिल सके । जव किं गांधीजी बुद्धकी मूति
या चित्र द्वारा देखनेवाछेको जिस वातका दर्शन कराते
कि वुद्ध अुन कमजोरियोंके साथ लम्बे समय. तक किस
तरह युद्ध करते रहे, जो कदम-कदम पर मनुष्यके अलग
अलग कामोंमें दिखाओ देती हें ।
अपने अपने दष्टिकोणके अनसार गांधीजी और
` गुरुदेव दोनोने सत्यका अंक अक पहलू दुनियाको दिखाया ।
भिस सत्यके जो दो पहलू ह, भुन दोनों पहलुओंके
वीच जो सम्बन्ध है तथा सुन दोनोको अक-दूसरेकी जो
आवश्यकता रहती दै, असके विषयमे मध्ययुगके जक
कविने वड़े सुन्दर टंगसे सेक गीतम अपने विचार प्रकट
क्य हू
कवि -- घोसलेमे तू रंन गवाया, कहां रहा तेरा गाना?
अव तो सूरे गगन छाया रे, तिमिर हुञा अवसान ।
रेन चैन तोर घोत्लेमें रे, गगनमे तू क्यों माता]
अगम अथाह अति गभीरा, असमं क्या युख पाता ?
पक्षौ -- हदे हदमं दिन वीता जव, भोग वहुत हम पाया
हदसे अहदमे जव मं इवा, तव ही आपा पाया ।
गां. नु~-र
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