गांधी और गुरुदेव | Gandhi Aur Gurudaev

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Gandhi Aur Gurudaev by जवाहरलाल नेहरू - Jawaharlal Neharu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य . ७ यदि गुरुदेवसे कहा गया होता कि आप बुद्धकी मति वनाजियें अथवा अनका चित्र अंकित कीजिये, तो वे यसी मति या चित्र बनाते जिसमें बुद्धके मुख पर विराजमान शान्तिकी -- जुस शान्तिकी जिसे मनुष्य जीवन-संग्राममें विजयी होकर ही प्राप्त करता है ---श्चलक देखनेवालेको मिल सके । जव किं गांधीजी बुद्धकी मूति या चित्र द्वारा देखनेवाछेको जिस वातका दर्शन कराते कि वुद्ध अुन कमजोरियोंके साथ लम्बे समय. तक किस तरह युद्ध करते रहे, जो कदम-कदम पर मनुष्यके अलग अलग कामोंमें दिखाओ देती हें । अपने अपने दष्टिकोणके अनसार गांधीजी और ` गुरुदेव दोनोने सत्यका अंक अक पहलू दुनियाको दिखाया । भिस सत्यके जो दो पहलू ह, भुन दोनों पहलुओंके वीच जो सम्बन्ध है तथा सुन दोनोको अक-दूसरेकी जो आवश्यकता रहती दै, असके विषयमे मध्ययुगके जक कविने वड़े सुन्दर टंगसे सेक गीतम अपने विचार प्रकट क्य हू कवि -- घोसलेमे तू रंन गवाया, कहां रहा तेरा गाना? अव तो सूरे गगन छाया रे, तिमिर हुञा अवसान । रेन चैन तोर घोत्लेमें रे, गगनमे तू क्यों माता] अगम अथाह अति गभीरा, असमं क्या युख पाता ? पक्षौ -- हदे हदमं दिन वीता जव, भोग वहुत हम पाया हदसे अहदमे जव मं इवा, तव ही आपा पाया । गां. नु~-र




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