शान्तिपथ | Shantipath

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Shantipath by श्री कुन्दकुन्दाचार्य - Shri Kundakundachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ पुत्र पिता प्र ररि सम टूटे, चाहे यह मर जावे । पिता पत्र पर रुप होय कर, परसे दूर कराये ॥। माई भाई लत स्वान सम, हैँ प्राणन्‌ के लेवा । धार कषाय उपाधि मच्रै, है दोउ दुःखदेवा ॥१३॥ विधवा नारी पति बिन दुखिया, बिन नारी पतिकोई ॥ क बालाका बद पती हो, दुखित अति मन होई इष्ठ मित्रका दोय बिछोहा, शोक करत तन छोजे । बाल अनाथ न कोउ सहाई, किसका आश्रय लीजे ॥१४॥ कृल कुटुम्बे लोग स्वार्थो, स्वारथ वस दुख देवें। दाब लगे पर धन संपति स्या, प्राणन तक्र हर लेवं ॥ नृप अन्यायी सव थन छीने, अत्याचारं करं द) बन्दी गृह मं डार मार फर, सम्पति सबं हः है ॥ १५॥ धरम नाम पर लत अयाने धन लूटें अघतापी । मार छेदकर प्राण लेत हर, रक्त बहांवे पापी ॥| न्यायासन पर बैठ करे अन्याय, घूस कोई लेवे। दोषीको निर्दोष बतावै, दण्ड सुजन को देवे ॥ १६ ॥ मारे भूटे चोर ठुटेरे, स्याल ब्याल इरया,




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