संक्षिप्त जायसी | Sankshipt Jayasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यिरि पहार परवत दहि गवे । सात समुद्र कीच मिलि गये॥ घरती फाटि, छात भहरानी | पुनि मह भया जो विधि दिढानी ॥ इस पुस्तक के रचनाकाल के सम्बन्ध में जायनी को कथन है-- नो से:वरत दुतीय जो मये। तव यहि कथा के श्रा कह ॥ इममें मफाइल, जिन्नाइल, इसराफील श्रीर श्रजराइल आदि फरिश्नों के कार्यो का उल्लेख करते हुए रसूल मुहम्मद का श्राखिरी न्याय में प्रवृत्त होना वातत है) भ्रंत में इस्लामी धमे-ग्रथो के स्वगं श्रौर उसके श्रानन्द का इस प्रकार वर्णन करते हुए पुस्तक को समाप्त किया गया है चित पिरीत, चित नव-तव नेहू । निति उठि चौगुन दोह सनेह ॥ नित्त नित्त जो वारि घियाहू । वीती बीस अधिक ओहि चाहै !। त्ये न मींचु; च नींद दुख, रह न देह सह शोग । सदा श्रनंद मुहम्मद सब सुख मानै मोय॥ जायी फी जिन पाच कृतियो का यहा परिचय दिया गया है, उनसे यह तो कि कवि को श्रमर कीति दिलानेवाली उसकी पहली कृति टी है। मापा श्रौर छत्द-प्रवन्ध एक-सा होते हुए भी अन्य दोनों रचनाएँ काव्य की कोर्टि से वाहर हैं ! केवल 'पदमावत' को ही जायसी की काच्य प्रतिभा का प्रतीक मानना चाहिए । उसी में लौकिक जीवन का सरस, युन्दर श्रीर स्निग्ध चित्र है 1 एङन्त पारमार्धिक दृष्टिकोण में काव्य को




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