राज सिंह | Raj Singh

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Raj Singh  by आदित्य नाथ - Aaditya Nath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजसिंद ९७ तब जुढ़िया ने विशेष रज्ञ चढा कर चित्र के कुदले जाने का सारा दाल कट्‌ सुनाया | [1 पाँचवाँ परिच्छेद दरिया बीवी बढ़िया के लड़के का नाम था शेख खिज़ । वह चिन्रकार था । उसकी दिल्‍ली में दुकान थी । मां के पास दो दिन रद्द कर वद्द दिल्‍ली चला गया । दिहली में उसी बीवी थी । चद्द दुकान में ही रहती थी । बीवी का नाम था फातिमा । ख््र ने श्रपनी माँ से रूपनगर वा जो दाल सुना था, वह सब फादिमा से कद्द दिया । उव वातं वेताने के वाद्‌ खिन्न ने फातिमा से कहा-- प्तुम्‌ श्रमी दरिया वीवीके पाखउजाध्रो | इसस्माचारको वेगम सादबाके यहाँ वेचने को कददना--शायद कु मिल जाय |?” दरिया बीवी पास के दी मदान में रददती है । मकान के पिछुवाड़े से जाने की राद्द है । इसलिये फातिमा बीवी बिना पर्दे के दी दरिया बीवी के घर ला पहुँची । खिज् या फातिमा का विद्नैप परिचयदेनेकी जरूरत नदीं पड़ी; किन्तु दरिया बौवी का दिशेष परिचय चाहिए, ही । द्रिया वीवी शा श्रचल नाम द्रीदुचिरा या ऐसी दी दुछ दै। दिन्दु इठ नाम से कोई “उन्हें दुलाता न या-लोग दरिया वीवी दी ष्हते थे । उसके माँ-बाप नहीं थे, केवल बडी द्न श्रौर एक चूटी पूफी या खाला, ऐसा ही दुछ थी । मकान में कोई मर्द नहीं या। दरिया बीवी की उम्र रुघह वर्ष से श्रघिक नद्दीं--उसपर छुछ नाटी थी, पन्द्रद व्यं से श्रध नष्ट लान पठती थी 1 द्रिया वीवी वहूत सुन्दरी थी, खिले हुए. फूल जैसी, खदा खिली हई । ४




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