समाधितंत्र प्रवचन भाग २ | Samadhi Tatra Pravachan Vol. - Ii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ दोहा ३० १३ किं समस्त इन्दर्योको संयत करे, वश करे। पंचेन्द्रियकं विषयोमे यहं सारा जगत्‌ विपन्न हो रहा है । दि , स्पशंनेन्द्रियविषयका परि गाम- देखो एक स्पशंनर मात्रके विषयका लोभी बनकर हाथी जैसा विशाल बलवान्‌ जानवर मवुष्यके वश हो जातां है। हाथी पकड़ने बाले लोग जंगलमें गड्ढा खोदते है, डस गड्ढे पर ` बांसकी पंचं विकर उसपर एक इन्दर्‌ मूटी हथिनी बनाते हँ ओर ५०, ६० हाथ दूर पर उस हथिनीके पास द्‌ःदता हा हाथी श्ना रहा है ऐसी आकृतिका दाथी बनाते है । जब जंगलका हाथी उस हैथिनीके विपयकी कामनासे दौडक्‌र 'झाता दे; सामने दूसरा, हाथी दिखता है; इस कारण छोर भी तेजी से झाता है। उन पंचों पर पेर रक्‍खा कि वे बांस टूट जाते ' है ओर हाथी गढढेमे गिर जाता दै । कर दिन तक भूखा वहीं पड़ा रहता है; शिथिल दो जाता है। फिर धीरे से रास्ता निकाल कर अङ्शसे वश करके उस हाथी को मनुष्य अपने आधीन कर तेते दै । रसनेन्द्रियविषयका परिणाम-- रसना इन्द्रियके विषयक लोभसे छाकर ये मछलियां फंस जाया करती ह । थोडे मांसके लोभमे भाकर काटेमे 'अपने कठ को कसा कर भाण गेवा देती है । ढीसर लोग वांसमे डोर लगाते है भौर डोरये अंते को$ कांटा लगाते हैं और उसमे कुछ मचा घगरह उस पर चिपक देते है, उसे पानीमे छोड़ देते दें । मछली उस मांसके लोममे आकर मुँह पसार कर उसे खा जाती है; उसमे लगा हुआ काटा कठमे छिद्‌ जाता हे; प्राण गंचा देती है । घ्रारोन्द्रियविषयका परिणाम-- घायेन्द्रियका विषय देखो--भेवरा शामको कमलके पुमे चेठ गया सुगधके लोभ्से, ` अव शासको कमल्त वद्‌ दो जाया करता है । सो या तो उस कमलम पडे-पडे श्वास स्क जाने से गुजर जाता है, या कोई जालवर दाथी श्रादिक ये र उस पूल्तको 'चबा डाले तो यों मर जाता दै। एक घ्राणेन्द्रियके विषयके लोभमे उस ' अवरे ते अपने भाण गंवा दिये । | चश्चुरिन्द्रियविषयका परिणाम-- चश्चुरिन्द्रियके िषर्योक्ी बात तो , सामने है । जलते दीपकको देखो उस पर पतंगे गिरते है भौर वे भर , जायां करते दै । वे देखते रदते हैं दुसरे मरे हुए पतंगोंको; फिर भी उनकी त धारणा दे कि वे भी उस दी लो पर गिरते है रौर मर जाते दे । शरोचेन्द्रियके बिपयका परिणास-- श्रोघ्रइन्द्रियके घशसें सांप पकड़े जाते है, हिरण पकडे जाते हैं । इन जीबोंको रागका बड़ा शोक है । सपेरे




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